भाई, कम-से-कम अब यह झूठा प्रचार बंद होना चाहिए कि भगवाइयों को अपने पूरे कुनबे में दूसरा कोई वीर मिला नहीं, इसलिए धो-पोंछकर सावरकर को ही वीर बनाने में लगे रहते हैं। माफीनामों का, तगड़ी पेंशन का, गोरे राज की सेवा का और यहां तक कि गांधी मर्डर का कितना भी शोर मचता रहे, सावरकर की वीरता का ढोल पीटने से बाज नहीं आते हैं। उल्टे पलटकर सवाल करते हैं–माफीवीर क्या वीर नहीं होता है? खैर अब उस सब की कोई जरूरत नहीं रह गयी है। अब तो खुद मोदी जी ने वीर के टाइटल के लिए बाकायदा अपनी दावेदारी पेश कर दी है। दावेदारी भी पब्लिक के सामने पेश की है। और वह भी अपने गुजरात में नहीं, घोर पराए बल्कि दुश्मन तेलंगाना में, बेगमपेट में। भक्तों के सामने खुद अपने मुंह से अपनी वीरता का बखान करते हुए, मोदी जी ने बताया कि वह तो दिन-रात लोगों की गालियां खाते हैं और आज से नहीं बीस-बाईस साल से खा रहे हैं। पर उन्होंने कभी गालियों की परवाह नहीं की, गालियां सिर्फ खाईं, बांटी किसी को नहीं। फिर उन्हें गालियां मिलने की उनके भक्त परवाह क्यों करें? भक्त तो बस उनका अनुकरण करें, उन्हें गालियां खाते देखें और मौज करें। अब सोचने वाली बात है कि अगर लिखकर माफियां मांगने वाला ऑफीशियली वीर घोषित किया जा सकता है, तो गालियां खाकर मजा लेने वाला तो महावीर ही हुआ! वीरता के मैदान में सावरकर के लिए अब वाकई गंभीर कंपटीशन है।
और मोदी जी की वीरता कोई सिर्फ बिना परेशान हुए गालियां सुनने की अकर्मक या रक्षात्मक वीरता ही नहीं है। गांधी जी ने कहा था — अकर्मक वीरता से तो कायरता अच्छी। उनकी वीरता, सकर्मक है। और यह सकर्मकता, खुद अपने मुंह से सारी दुनिया को यह सुनाने की ही सकर्मकता भी नहीं है कि देखो, देखो, विरोधी मुझे गालियां दे रहे हैं ; कि मुझे हमेशा से ही गालियां सुननी पड़ी हैं, आदि-आदि। यह आए दिन यह दिखाने की सकर्मकता तो हर्गिज नहीं है कि विरोधी मेरे साथ बड़ा अन्याय कर रहे हैं, नाहक मुझे गालियां देते रहते हैं, आप चुनाव में मेरे साथ हुए इस अन्याय का बदला लेना, वगैरह-वगैरह। उनकी वीरता की सकर्मकता इसमें है कि रात-दिन खाने को मिलने वाली इन गालियों को, मोदी जी ने अपनी इनर्जी का स्रोत बना लिया है।
लोग मोदी जी से पूछते हैं कि आप कभी थकते क्यों नहीं हैं? उन्हें समझ लेना चाहिए कि क्लाउड कवर और नाला गैस की तरह, विरोधियों की गालियों के साथ भी मोदी जी ने जबर्दस्त चमत्कार किया है; गालियों को ऊर्जा का स्रोत बना दिया है। नतीजा यह कि बंदे की बैटरी कभी डाउन ही नहीं होती। और इस बार तो खैर मोदी जी ने बाकायदा तौलकर यह भी बता दिया कि हर रोज उन्हें दो-ढाई किलो गालियां खाने को मिलती हैं। दो-ढाई किलो गालियां खाने से उन्हें कितनी ऊर्जा मिलती होगी, यह अध्ययन का विषय है। हां! इतना जरूर है कि चार साल पहले, 2018 में मोदी जी ने गालियों की अपनी खुराक डेढ़-दो किलो प्रतिदिन बतायी थी। तब भी मोदी जी अठारह-अठारह घंटे काम किया करते थे। अब जब गालियों का हर रोज का आहार औसतन आधा किलो तो बढ़ ही गया है, बंदा काम के घंटे और कितने बढ़ा सकता हैै? अब इनटेक बढ़ेगा और ऊर्जा का उपयोग उसी अनुपात में नहीं बढ़ेगा, तो मोटापा चढ़ेगा! हमें लगता है कि जी-20 की टेंपरेरी अध्यक्षता आने के बाद अगले ही नाप में मोदी जी को अपनी छाती का साइज अपग्रेड करना पड़ेगा–छप्पन इंची से अट्ठावन इंची होने से अब कोई नहीं रोक सकता है। और हां, मोदी जी की गालियों की दैनिक खुराक में बढ़ोतरी में उनकी लोकप्रियता में किसी तरह की कमी खोजने की कोशिश कोई नहीं करे। 2018 से 2022 के बीच यानी चार साल में औसत निकालें तो पौने दो किलो से सवा दो किलो पर आंकड़ा पहुंचा है यानी चार साल में करीब 30 फीसद की यानी सालाना औसतन 7.5 फीसद वृद्धि । इस तरह जीडीपी की वृद्धि दर के आस-पास ही चल रही है मोदी की गालियों की खुराक में वृद्धि की दर। निर्मला सिद्धांत से लोकप्रियता कम नहीं हुई है, बस गालियों की दर बढ़ गयी है!
हमने पहले ही कहा, विरोधियों की गालियों के मामले मेें मोदी जी की वीरता, सकर्मक है। गालियों का सामना करने में वीरता की इससे ऊंचे दर्जे की सकर्मकता क्या होगी कि गुजरात में चुनाव के लिए बाकायदा घर वापसी से पहले, मोदी जी दक्षिण के चार राज्यों के दो दिन का दूर-चुनावी दौरा भी कर आए, जिनमें से कम-से-कम दो में, मोदी जी के कृपा-प्राप्त राज्यपालों पर, चुनी हुई सरकारें बुरी तरह से भडक़ी हुई हैं। यानी वहां मोदी जी को गालियों की कुछ न कुछ एक्स्ट्रा खुराक मिलना तय था। आलम यह है कि तमिलनाडु में डीएमके के नेतृत्ववाले सत्ताधारी गठबंधन के सभी सांसदों ने राष्ट्रपति को चिट्ठी लिखकर, उनसे राज्यपाल को वापस बुलाने की मांग की है, जबकि तेलंगाना में खुद राज्यपाल ने राज्य सरकार पर अपने फोन आदि टैप कराए जाने के आरोप लगाए हैं। दक्षिण के जिस इकलौते राज्य का मोदी जी ने न दौरा किया और न कोई उद्घाटन वगैरह किया, वह था केरल। वहां तो खैर, भगवा पार्टी की कमान राज्यपाल ने ही संभाल ली लगती है। राज्यपाल, विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलरों को हटाने के लिए भिड़ा हुआ है और सरकार, राज्यपाल को ही चांसलर के पद से हटाने में। और कर्नाटक में तो खैर डबल इंजन सरकार है यानी पीएम भी मोदी भक्त, राज्यपाल भी मोदी भक्त, सिर भी काटें तो कम से कम पब्लिकली थैंक यू मोदी जी के ही नारे लगेंगे। पर मोदी जी रत्ती भर नहीं डरे और विरोधियों की गालियों के सामने अपनी वीरता के झंडे गाड़ आए। और तो और आंध्र प्रदेश में विशाखापट्टनम में, जहां लोग किसान आंदोलन से पहले से सरकारी इस्पात कारखाने के बेचे जाने के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं, मोदी जी हजारों करोड़ रुपए की ढांचागत विकास परियोजनाओं का उद्घाटन भी कर आए। इससे बड़ी वीरता क्या होगी?
और गुजरात में तो खैर मोदी जी की वीरता का पूछना ही क्या, वहां के शेर हैं, शेर! देखा नहीं, मोरवी के झूला पुल के टूटने के बाद, नदी में गिरे लोगों को बचाने का झूठा स्वांग रचने वालेे भगवाई विधायक तक तो टिकट पहुंच गया, पर मरम्मत की जगह पुल के गिरने का इंतजाम करने वाली निजी कंपनी के मालिक, जयसुख पटेल के आसपास भी पुलिस नहीं पहुंच पायी है। उधर चाहे दूसरे चालीस फीसद से ज्यादा विधायकों का टिकट गया, गोधरा के विधायक चंद्रसिंह राउलजी का टिकट एकदम सुरक्षित रहा है ; उन्होंने बिलकिस बानो केस के अपराधियों के ‘‘संस्कारी ब्राह्मïण’’ होने को पहचान कर, उनकी सजा माफ करने की सिफारिश करायी थी! और नरोडा पाटिया से टिकट मिला है, 2002 के हत्याकांड के अपराधी, पंकज कुलकर्णी की बेटी, डाक्टर पायल कुकरानी को। आखिर, हत्याकांड की मुख्य आरोपी, डॉ. माया कोडनानी की सीट को कोई योग्य उत्तराधिकारी भी तो मिलना चाहिए! जाहिर है कि वीर अपने मन की करते हैं; वीर इसकी परवाह नहीं किया करते कि लोग क्या कहेेंगे!
और कोई वीर ही यह सब करने के बाद भी यह दावा कर सकता है कि हम तो, जनता की जिंदगी बदलने निकले हैं! पर यह तो देश ही वीर जवानों का है ; यहां चौड़ी छाती वीरों की!
*(व्यंग्यकार प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
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