रायपुर. छत्तीसगढ़ राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (सीजीएसएलएसए) ने राज्य में पहली बार जेल लोक अदालत की शुरुआत की है. प्राधिकरण के अधिकारियों ने शुक्रवार को यह जानकारी दी . अधिकारियों ने बताया कि जेलों में भीड़ कम करने के उद्देश्य से की गई इस पहल ने कई कैदियों और उनके परिवार के सदस्यों के चेहरे पर खुशी ला दी है.
उन्होंने बताया कि 15 अक्टूबर को राज्य के सभी 33 जेलों में पहली बार राज्य स्तरीय जेल लोक अदालत का आयोजन किया गया, जिसमें कुल 448 कैदियों को रिहा किया गया. प्राधिकरण के सदस्य सचिव आनंद प्रकाश वारियाल ने बताया कि उच्चतम न्यायालय ने इस वर्ष के शुरुआत में ‘सोनाधर बनाम छत्तीसगढ़ राज्य’ की सुनवाई करते हुए जेलों में भीड़ कम करने के लिए सुझाव मांगे थे. इसके बाद सीजीएसएलएसए ने जेल लोक अदालत आयोजित करने का प्रस्ताव प्रस्तुत किया था .
वारियाल ने बताया कि इस प्रस्ताव को शीर्ष अदालत ने स्वीकार कर लिया और छत्तीसगढ़ इस तरह की पहल करने वाला देश का पहला राज्य बन गया. उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति गौतम भादुड़ी ने 15 अक्टूबर को राज्य के सभी जेलों में रायपुर केंद्रीय जेल से जेल लोक अदालत की शुरुआत की.
वारियाल ने बताया कि इस दौरान जेलों में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट/न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी और कार्यकारी मजिस्ट्रेट मौजूद थे. इस दौरान 448 मामलों का निपटारा किया गया.
उन्होंने बताया कि जशपुर में सबसे अधिक 163 कैदियों को रिहा किया गया, जबकि रायपुर में 85 लोगों को रिहा किया गया.
अधिकारी ने बताया कि राज्य के सभी जेलों में कामकाजी शनिवार को जेल लोक अदालत का आयोजन किया जाएगा. जेल विभाग से प्राप्त जानकारी के अनुसार राज्य में पांच केंद्रीय जेल, 12 जिला जेल और 16 उप-जेल हैं तथा ज्यादातर जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं.
वारियाल ने बताया कि जेल लोक अदालत में चोरी, घर में अतिक्रमण, मामूली विवाद आदि से जुड़े मामलों की सुनवाई होगी.
वहीं जमानत मिलने के बाद भी जेल में बंद कैदियों तथा साधारण प्रकृति के अपराधों में काफी समय से जेल में बंद कैदियों पर भी जेल लोक अदालत में विचार किया जाएगा.
जेल लोक अदालत की शुरुआत करते हुए न्यायमूर्ति भादुड़ी ने कहा था कि छत्तीसगढ़ पहला राज्य है जिसने कैदियों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए ऐसा कदम उठाया है. उन्होंने कहा था कि जेलों में भीड़ भाड़ एक तरह से कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन है. यह संयुक्त प्रयास आम आदमी के अधिकारों की रक्षा और संविधान की भावना को बनाए रखने के लिए है.
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