हमारी परंपराओं और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करना, इसे बढ़ावा देना और इसे जितना संभव हो सके आगे बढ़ाना हम सबका दायित्व है: श्री नरेन्द्र मोदी
प्रधानमंत्री ने मन की बात कार्यक्रम के दौरान, ग्रीस के गायक – ‘कॉन्स्टेंटिनोस कलित्ज़िस’ के बारे में बात की, जिन्होंने गांधीजी की 150वीं जयंती समारोह के दौरान बापू का पसंदीदा गीत गाया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि इस गायक का भारत से इतना लगाव है, कि पिछले 42 सालों में वे लगभग हर वर्ष भारत आए हैं। श्री मोदी ने कहा कि उन्होंने भारतीय संगीत की उत्पत्ति, विभिन्न भारतीय संगीत प्रणालियों, विभिन्न प्रकार के रागों, तालों और रसों के साथ-साथ विभिन्न घरानों के बारे में अध्ययन किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने भारतीय संगीत की कई महान हस्तियों के योगदान का अध्ययन किया है। उन्होंने भारत के शास्त्रीय नृत्यों के विभिन्न पहलुओं को भी बारीकी से समझा है। अब उन्होंने भारत से जुड़े इन तमाम अनुभवों को बड़ी खूबसूरती से एक किताब में पिरोया है। भारतीय संगीत नामक उनकी पुस्तक में लगभग 760 चित्र हैं। इनमें से ज्यादातर तस्वीरें उन्होंने खुद खींची हैं। दूसरे देशों में भारतीय संस्कृति के प्रति ऐसा उत्साह और आकर्षण वास्तव में दिल को छू लेने वाला है।
प्रधानमंत्री ने एक और दिलचस्प तथ्य पर प्रकाश डाला कि पिछले 8 वर्षों में भारत से वाद्य यंत्रों का निर्यात साढ़े तीन गुना बढ़ गया है। इलेक्ट्रिकल संगीत वाद्ययंत्रों के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि इन वाद्ययंत्रों का निर्यात 60 गुना बढ़ गया है। इससे पता चलता है कि पूरी दुनिया में भारतीय संस्कृति और संगीत के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रहा है। भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों के सबसे बड़े खरीदार संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, जापान और ब्रिटेन जैसे विकसित देश हैं। यह हम सभी के लिए सौभाग्य की बात है कि हमारे देश में संगीत, नृत्य और कला की इतनी समृद्ध विरासत है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी महान संत कवि भर्तृहरि को उनके ‘नीति शतक’ के लिए जानते हैं। एक छंद में वे कहते हैं कि कला, संगीत और साहित्य के प्रति लगाव ही मानवता की वास्तविक पहचान है। सही मायने में हमारी संस्कृति इसे मानवता से ऊपर, देवत्व तक ले जाती है। वेदों में सामवेद को हमारे विविध संगीत का स्रोत कहा गया है। मां सरस्वती की वीणा हो, भगवान कृष्ण की बांसुरी हो या भोलेनाथ का डमरू, हमारे देवी-देवता भी संगीत से जुड़े हुए हैं। हम भारतीय हर चीज में संगीत ढूंढते हैं। नदी की गुनगुनाहट हो, वर्षा की बूँदें हों, पक्षियों की चहचहाहट हो या हवा की गुंजायमान ध्वनि, संगीत हमारी सभ्यता में हर जगह मौजूद है। यह संगीत न सिर्फ तन को सुकून देता है, बल्कि मन को भी आनंदित कर देता है। संगीत हमारे समाज को भी जोड़ता है। अगर भांगड़ा और लावणी में जोश और आनंद का भाव है, तो रवींद्र संगीत हमारी आत्मा को ऊपर उठा देता है। देश भर के आदिवासियों की अलग-अलग संगीत परंपराएं हैं। वे हमें एक दूसरे के साथ और प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने के लिए प्रेरित करती हैं। संगीत के हमारे रूपों ने न केवल हमारी संस्कृति को समृद्ध किया है, बल्कि दुनिया के संगीत पर भी अपनी अमिट छाप छोड़ी है। प्रधानमंत्री ने दोहराया कि भारतीय संगीत की ख्याति दुनिया के कोने-कोने में फैल गई है।
प्रधानमंत्री ने भारत से हजारों मील दूर दक्षिण अमेरिकी देश गुयाना तक भारतीय परंपराओं और संस्कृति के प्रभाव के बारे में भी बताया। 19वीं और 20वीं शताब्दी में भारत से बड़ी संख्या में लोग गुयाना गए। वे भजन कीर्तन की परंपरा सहित भारत की कई परंपराओं को भी अपने साथ ले गए। जिस प्रकार से हम भारत में होली मनाते हैं, उसी प्रकार से गुयाना में भी होली के रंग उत्साह के साथ सजीव हो उठते हैं। जहां होली के रंग हैं, वहीं फगवा यानी फगुआ का संगीत भी है। गुयाना के फगवा में भगवान राम और भगवान कृष्ण से जुड़े विवाह गीत गाने की एक विशेष परंपरा है। इन गीतों को चौताल कहा जाता है। वे समान प्रकार की धुन पर और ऊंची पिच पर गाए जाते हैं जैसा कि हम यहां गाया करते हैं। इतना ही नहीं गुयाना में चौताल प्रतियोगिताएं भी आयोजित की जाती हैं। इसी तरह, कई भारतीय, खासकर पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग, फिजी भी गए थे। वे पारंपरिक भजन-कीर्तन, मुख्य रूप से रामचरितमानस के दोहे गाते थे। उन्होंने फिजी में भजन-कीर्तन से जुड़ी कई मंडलियां भी बनाईं। फिजी में आज भी रामायण मंडली के नाम से दो हजार से अधिक भजन-कीर्तन मंडलियां हैं। आज उन्हें हर गांव और इलाकों में देखा जा सकता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम सभी को हमेशा इस बात का गर्व होता है कि हमारा देश दुनिया की सबसे पुरानी परंपराओं का घर है। इसलिए हमारा भी दायित्व है कि हम अपनी परंपराओं और पारंपरिक ज्ञान को संरक्षित करें, इसे बढ़ावा दें और इसे ज्यादा से ज्यादा आगे ले जाएं। ऐसा ही एक सराहनीय प्रयास हमारे उत्तर पूर्व राज्य नागालैंड के कुछ मित्रों द्वारा किया जा रहा है। इन परंपराओं और हुनर को बचाने और अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए वहां के लोगों ने एक संगठन बनाया है, जिसका नाम है ‘लिदी-क्रो-यू’। लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी नागा संस्कृति के खूबसूरत पहलुओं को पुनर्जीवित करने का काम इस संगठन ने किया है। उदाहरण के लिए नागा लोक संगीत अपने आप में एक बहुत समृद्ध विधा है। इस संस्था ने नागा म्यूजिक एल्बम लॉन्च करने का काम शुरू कर दिया है। अब तक इस तरह के तीन एलबम रिलीज हो चुके हैं। ये संगठन लोग लोक संगीत और लोक नृत्य से संबंधित कार्यशालाएं भी आयोजित करते हैं। इन सभी के लिए युवाओं को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। इतना ही नहीं, परिधान बनाने, सिलाई और बुनाई की पारंपरिक नागालैंड शैली में भी युवाओं को प्रशिक्षित किया जाता है। उत्तर पूर्व में बांस से कई तरह के उत्पाद बनाए जाते हैं। नई पीढ़ी के युवाओं को बांस के उत्पाद बनाना भी सिखाया जाता है। इससे ये युवा न केवल अपनी संस्कृति से जुड़ते हैं बल्कि उनके लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करते हैं। लिडी-क्रो-यू में लोग नागा लोक-संस्कृति के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक करने का प्रयास करते हैं।
प्रधानमंत्री ने सभी से इसी तरह की पहल करने और अपने-अपने क्षेत्र और इलाकों में सांस्कृतिक शैलियों और परंपराओं के संरक्षण के लिए काम करने का आग्रह किया।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात कार्यक्रम के विभिन्न संस्करणों में एक भारत श्रेष्ठ भारत को गौरवपूर्ण स्थान दिया है।
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