सत्र के दौरान वैश्विक सिनेमा के वितरण में विभिन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया
शिबाशीष सरकार ने इस बात पर चर्चा की कि वैश्विक स्तर पर महंगाई और मंदी से उपभोक्ता व्यय आखिरकार किस तरह से बुरी तरह प्रभावित हुआ है। उन्होंने बताया कि यही कारण है कि महामारी के बाद बेहद कम लोग सिनेमाघरों का रुख कर रहे हैं। नवीन चंद्रा ने बताया कि डिजिटलीकरण की नई लहर ने हर परिवार में ‘व्यक्तिगत आलोचक’ उत्पन्न कर दिया है। फिल्म समीक्षा महज कुछ ही सेकेंडों के भीतर पोस्ट कर दी जाती है और ऐसे में संबंधित फिल्म के लिए कई चुनौतियां उत्पन्न हो जाती हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वैश्विक सिनेमा के क्षेत्रीयकरण ने किस तरह से दर्शकों की पसंद को काफी हद तक प्रभावित किया है। उन्होंने उदाहरण देते हुए बताया कि आखिरकार कैसे एक कोरियाई फिल्म ऑस्कर 2022 में सर्वश्रेष्ठ फिल्म बन गई।
सुनीर खेतरपाल ने अपने विचार पेश करते हुए कहा कि कोई भी बड़ी या छोटी फिल्म नहीं होती है, बल्कि केवल अच्छी और बेकार फिल्में होती हैं। उन्होंने कहा कि सिनेमा का सार दरअसल अच्छी फिल्म बनाना है। निंग यिंग ने बड़े सितारों की ओर से वैश्विक सिनेमा को मिल रही एक नई चुनौती की चर्चा की। उन्होंने कहा, ‘बड़े सितारों पर फिल्म निर्माता अपनी उम्मीद के मुताबिक बड़ा दांव लगाते हैं। हालांकि जब कोई फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से पिट जाती है तो उन्हें भारी नुकसान होता है।’ इसी तरह उन्होंने कहा कि जब दर्शकों की बात आती है तो महामारी के बाद चीन मुख्यत: अपने घरेलू बाजार पर ही अपना ध्यान केंद्रित करता रहा है क्योंकि चीन की विशाल आबादी दरअसल घरेलू सिनेमा के लिए एक विशाल बाजार है।
इस सत्र का समापन शिबाशीष सरकार की इस राय के साथ हुआ कि आखिरकार कैसे हिंदी सिनेमा को प्रासंगिक एवं दमदार कहानियों के साथ बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करते हुए डब फिल्मों के बाजार में अपनी व्यापक पहुंच सुनिश्चित करनी चाहिए। वह ओटीटी प्लेटफॉर्मों के प्रति भी काफी आशान्वित नजर आए और उन्होंने गुणवत्तापूर्ण फिल्म कंटेंट को समृद्ध करने में इनके बहुमूल्य योगदान को स्वीकार किया।
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