टेक इट ईज़ी सोनिया, राहुल, प्रियंका, पवन और खड़गे, सब्बो मन के पैर एक साथ हमर माटी पे पड़गे

Estimated read time 1 min read

सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल ,,,,,

खास दोस्त झण्डू और बण्डू घूमते हुए राजनैतिक चर्चा न करें और ब्लड प्रेशर न बढ़ाएं ऐसा हो ही नहीं सकता। इस बार का विषय का निस्संदेह कांग्रेस अधिवेशन था। झण्डू ने बात शुरू की….  ‘राजधानी रायपुर में  85वें अधिवेशन में कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी ने व्याख्यान में 1998 में पहली बार अध्यक्ष बनने से लेकर मनमोहन सिंग को प्रधानमंत्री बनाने और अंत में कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा तक का उल्लेख कर कहा कि उन्हें अपने निर्णय पर संतोष है। क्यों नहीं होगा भैया…. एक इतना मौन रहने वाला मन के लिये  मोहक जी हुजूर ब्राण्ड प्रधानमंत्री मिला था। किया आपने और भ्रष्टाचार के लिये गरियाए वो गये’। संतोष तो होगा ही न। तभी तो प्रणव  मुखर्जी को  मौका नहीं दिया गया और राष्ट्रपति बनाकर किनारे कर दिया गया’। बण्डू ने कंधे पे हाथ रखा है मुस्कुराकर कहा ‘टेक इट ईज़ी, टेक इट ईज़ी…. ।
अब बारी बण्डू की थी बोले …
‘सम्मेलन में अध्यक्ष खड़गे कह रहे हैं कि ‘देश में नफरत का माहौल है। दूसरी ओर राहुल गांधी का कहना है कि सारा देश घूमा। कहीं भी नफरत नजर नहीं आई’, क्या बोलते हैं ये लोग…  क्या कहना चाहते हैं…. यानि  जब जो मन में आया बोल दिया’। न सर, न पैर, उलजलूल’। अब बारी झण्डू की थी बण्डू के कंधे पर हाथ रखकर बोले ‘टेक इट ईज़ी, टेक इट ईज़ी’। और दोनो दोस्त ठठाकर हंस पड़े।

रे… दादा…. रे….

भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने बार-बार कहा कि उनकी यात्रा नफरत और डर के खिलाफ है। फिर एक बार कहा ‘मुझे कोई धमकी नहीं मिली, मुझे कहीं डर नहीं दिखा’। ये विरोधाभासी बातें करके वे क्या कहना चाहते हंै, समझ से परे है। फिर एक बार कहा कि उनकी यात्रा तपस्या और आत्मचिन्तन के लिये है और ये भी कि उन्होंने राहुल गांधी को मार दिया है अब राहुल गांधी है ही नहीं। राहुल गांधी केवल आपके दिमाग में है। राहुल गांधी ने ये भी कहा कि आप कन्फयूज हो गये। आप हिन्दुधर्म को पढ़ो, आप शिव को पढ़ो…. । फिर से सुनिये राहुल गांधी ने ही ये कहा कि ‘हिन्दु धर्म को पढ़िये, शिव का पढ़िये… । गोया कि रागा खुद ने हिंदु धर्म को पढ़ समझ लिया है और वे खुद शिव को जान चुके हैं। यानि नितान्त विद्वान हैं… अध्यात्म के ज्ञानी होने के इस ढोंग को देखकर पुराने लोग हंसे ओर नये लोगों ने कहा… रे… दादा… रे… ’।
गाना तो कईयों को आता है
कोई खुशमिजाज ही गाता है

त्रिपुरा के मुख्यमंत्री माणिक साहा एक आर रेल में सफर कर रहे थे। अपने कुछ साथियों के साथ सफर के दौरान गाने-बजाने का दौर चल पड़ा। सबको ये देखकर खुशी हुई कि मुख्यमंत्री होते हुए उन्होंने आम आदमी की तरह मस्ती के साथ गाना गाया। उन्हें न सिर्फ गाना आता था और किशोर कुमार के गाने बेहतरीन ढंग से गाए। ऐसे मे भाजपा के ही एक नेता का जिक्र करना आवश्यक है कि दिल्ली के भाजपा अध्यक्ष रहे मनोज तिवारी एक प्रोग्राम में अतिथि बनकर गये। तिवारी एक प्रसिद्ध गायक हैं लिहाजा वहां पर एंकर ने उनसे एक गाना गाने का अनुरोध कर दिया तो उनका दम्भ जग गया और उन्होंने गाना तो नहीं ही गाया बल्कि एंकर के इस अनुरोध को अपमान अपमान बताया कि आपकी हिम्मत कैसे हुई एक सांसद से मंच पर गाना गाने के लिये कहने की। उन्होनें एंकर को मंच से उतरवा दिया।  ऐसा भी क्या घमण्ड…

बोले तो … मुसीबत
न बोले तो …. मुसीबत

जो लोग ज्यादा बोलते हैं वे कभी-कभी हंसी के पात्र भी बन जाते हैं। कई विद्वानों का कहना है कि इंसान को कम बोलना चाहिये। कम बोलने से सम्मान बढ़ता है। ये बात बचपन से सुनते आ रहे हैं कि अधिक बोलने वाला तौल लिया जाता है। समाज में उसका वजन कम हो जाता है। अब एक नयी थ्योरी सामने आई है कि अजनबियों से खुलकर बात करनी चाहिये। इससे स्वस्थ रहा जा सकता है क्योंकि  इससे खुशी मिलती है। अजनबियों से बोलने से अपने अंदर आत्मविश्वास तो बढ़ता ही है और भी कई तरह के पाॅज़िटिव बदलाव देखे गये।

—————————————–
जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
 9522170700

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours