Category: लेख-आलेख
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम सीधे रस्ते की टेढ़ी चाल पाकिस्तान छाया रहता था जहां मोदी की बदौलत तिरंगा दिखा वहां
आतंक का था दबदबा इससे नहीं कोई अनजान के लालचैक श्रीनगर पर कायम था कभी पाकिस्तान आज राहुल ने फहराया इतराकर जहां झण्डा वहां मोदी [more…]
“अडानी इज इंडिया” के दावे पर इतना सन्नाटा क्यूँ है भाई? (आलेख : बादल सरोज)
भारत में 21वीं सदी के सबसे बड़े घोटाले, ठगी और बेईमानी पर दुनिया भर में भारत की सरकार और उसके कारपोरेट की भद्द पिटी पड़ी [more…]
सर्दी में गर्मी का अहसास (व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)
कोई हमें बताएगा कि मोदी जी के विरोधियों को सर्दी में ही उनका विरोध करने की क्यों सूझती हैॽ एनआरसी के विरोध के नाम पर [more…]
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम चुनावी साल में मंत्रीजी को आईडिया आया धांसू गणतंत्र दिवस पर अफसर के छलका दिये आंसू
{बजट बजाएगा …. – एक फरवरी को बजट पेश किया जाएगा। बजट पेश करने से पहले शुभ ‘हलवा सेरेमनी’ का आयोजन किया जाता है। हलवा [more…]
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम विज्ञापनों के झूठ की दुनिया किताबों में सहज है समस्या को हल करना लेकिन कठिन है इस पर अमल करना
{इसमें क्या खास बात है…. महासमुंद, कांकेर में अधिकारियों ने अपने रिश्तेदारों को करोड़ों के ठेके दे दिये’ ये खबर छपी। लोग हंस दिये। ये [more…]
वरिष्ठ पत्रकार चंद्र शेखर शर्मा की बात बेबाक,, चमत्कार को नमस्कार है –
आज कल बागेश्वर वाले बाबा चहुओर चर्चित हो चले है , जितना बाबा अपने कामो से चर्चित नही हो पाए थे उससे ज्यादा विरोधियों की [more…]
रौद्र और कोमल की जुगलबंदी की जुगत के पीछे क्या है? (आलेख : बादल सरोज)
संगीत, भारतीय शास्त्रीय संगीत में स्वर और रागों का एक ख़ास विधान है। स्वर की नियमित आवाज को उसकी निर्धारित तीव्रता से नीचा उतारने पर [more…]
हल निकलेगा ; जितना गहरा खोदोगे, जल निकलेगा!! (आलेख : बादल सरोज)
हाल के दिनों में भारतीय राजनीति का सबसे उल्लेखनीय पहलू उस नैरेटिव – आख्यान – का ध्वस्त होना है, जिसे बड़ी चतुराई और तरतीब से [more…]
वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम 26 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर विशेष अंधेरे में रखे गये जिन्होंने सतत् जेलों का स्वाद चखा मजे मारे जिन्होंने मखमल के नीचे कदम नहीं रखा
0वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम 026 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर विशेष 0अंधेरे में रखे गये जिन्होंने सतत् जेलों का स्वाद चखा मजे मारे [more…]
भारी होती परेड, हल्का पड़ता गणतंत्र (आलेख : राजेंद्र शर्मा)
भारतीय गणतंत्र अपने तिहत्तर साल पूरे करने के बाद आज वास्तव में किस दशा में है, इसकी तस्वीर पूरी करने के लिए, बस इमरजेंसी की [more…]