नारायणपुर. नक्सलियों का गढ़ माने जाने वाले छत्तीसगढ़ के पहाड़ी क्षेत्र अबूझमाड़ को अगले कुछ वर्षों में लीची उत्पादन के केंद्र के तौर पर एक नयी पहचान मिलने की उम्मीद है. अधिकारियों ने बताया कि इलाके की अनुकूल भू-जलवायु दशाओं को देखते हुए स्थानीय प्रशासन आदिवासियों को लीची उत्पादन के लिए प्रोत्साहित करने के वास्ते एक अभियान चला रहा है.
अबूझमाड़ लगभग 4,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और इसका बड़ा हिस्सा बस्तर संभाग के नारायणपुर जिले में पड़ता है. यह स्थान राजधानी रायपुर से लगभग 350 किलोमीटर दूर है. अधिकारियों ने बताया कि बागवानी विभाग ने आदिवासी किसानों की आय बढ़ाने के लिए 10 गावों की करीब 200 एकड़ जमीन में लीची का उत्पादन करने की योजना तैयार की. नारायणपुर के बागवानी विभाग के सहायक निदेशक मोहन साहू ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हालांकि, विभाग पिछले कुछ वर्षों से
स्थानीय आदिवासियों को लीची के पौधे उपलब्ध कराने की पेशकश कर रहा था,लेकिन विभिन्न कारणों के चलते यह काफी सीमित था. अब हमने इसकी बागवानी का विस्तार करने का निर्णय लिया है.’’ इसके लिए अकाबेड़ा, गुदादी, ओरछा, कस्तूरमेता, परलबेड़ा, कोडोली, मार्डेल और छोटेपलनार गांवों के आदिवासियों से संपर्क किया गया था.
साहू ने बताया कि 15 जून से अब तक इन गांवों में 3,500 पौधे लगाये गए और इस मौसम में यह संख्या 10,000 तक पहुंचाने का है.
उन्होंने कहा कि अबूझमाड़ की भू-जलवायु दशाएं मुजफ्फरपुर (बिहार) से मिलती जुलती है,जो देश में लीची उत्पादन का केंद्र है. अबूझमाड़ घने जंगल,पहाड़ी से घिरा है और समुद्र तल से 1,600-1,700 मीटर की ऊंचाई पर है. उन्होंने बताया कि नर्सरी में अच्छे परिणाम नजर आने के बाद आदिवासी लीची का उत्पादन करने के लिए राजी हो गए.
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