रायपुर. नवरात्रि का पर्व 3 अक्टूबर से शुरू होने जा रहा है. मां दुर्गा अनेक रूपों में अपने भक्तों को दर्शन देती हैं. आज हम छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ की बात करने वाले हैं, जहां माता बम्लेश्वरी विराजमान हैं. अपनी मुराद पूरी करने माता के इस धाम में देश-विदेश से लोग आते हैं. कोई 1100 सीढ़ियां पैदल चढ़कर यहां पहुंचता है तो कोई रोप-वे से मां के दरबार पहुंचता है. मां बम्लेश्वरी मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर 22 सौ साल पुराना है. जो भी यहां सच्चे मन से आता है उसकी सभी मुरादें पूरी हो जाती है. वहीं पहाड़ के नीचे भी मां बम्लेश्वरी का एक मंदिर है. यह छोटी बम्लेश्वरी के नाम से प्रसिद्ध है. मान्यता है कि वे मां बम्लेश्वरी की छोटी बहन हैं. मां बम्लेश्वरी मंदिर को लेकर दो प्रचलित किवदंतियां है। ऐसा बताया जाता है कि करीब 2200 साल पहले यहां राजा वीरसेन का शासन था. वह प्रजापालक राजा थे और सभी उनका बहुत सम्मान करते थे, लेकिन एक दुख था कि उनका कोई संतान नहीं था. पंडितों के बताए अनुसार उन्होंने पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए शिवजी और मां दुर्गा की उपासना की. साथ ही अपने नगर में मां बम्लेश्वरी के मंदिर की स्थापना करवाई और संतान की मुराद मांगी. बताया जाता है कि मंदिर की अधिष्ठात्री देवी मां बगलामुखी है. उन्हें मां दुर्गा का स्वरूप माना जाता है. उन्हें यहां मां बम्लेश्वरी के रूप में पूजा जाता है. मंदिर निर्माण के बाद राजा को एक पुत्र की प्राप्ति हुई. उनके पुत्र कामसेन हुए, जो राजा की ही तरह प्रजा के प्रिय राजा बने. अत्यधिक जंगल और पहाड़ी दुर्गम रास्ता होने के कारण राजा कामसेन ने मां से विनती की और नीचे विराजमान होने का आग्रह किया. इसके बाद मां बगलामुखी राजा कामसेन की भक्ति से प्रसन्न होकर पहाड़ों से नीचे छोटी मां के रूप में विराजमान हुई. कालांतर में भाषाई उच्चारण के चलते मैया का नाम छोटी बम्लेश्वरी पड़ा.
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