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जलवायु परिवर्तन से निपटने पर विश्व बैंक के कार्यक्रम में प्रधानमंत्री के अंग्रेजी में वीडियो संदेश का हिंदी अनुवाद

New Delhi (IMNB). विश्व बैंक की प्रेसिडेंट, मोरक्को के एनर्जी ट्रांजिशन और सस्टेनेबल डेवलपमेंट मिनिस्टर, मेरी कैबिनेट सहयोगी निर्मला सीतारमण जी, लॉर्ड निकोलस स्टर्न, प्रोफेसर सनस्टीन और अन्य विशिष्ट अतिथियो! नमस्कार! मुझे खुशी है कि विश्व बैंक जलवायु परिवर्तन पर व्यवहार परिवर्तन के प्रभाव पर इस कार्यक्रम का आयोजन कर रहा है। यह मेरे दिल के करीब का मुद्दा है, और इसे एक वैश्विक आंदोलन बनते हुए देखना बहुत अच्छा लगता है। महानुभावो, एक महान भारतीय दार्शनिक, चाणक्य ने दो हजार साल पहले इसे लिखा था: जल बिन्दु निपातेन क्रमशः पूर्यते घटः| स हेतुः सर्व विद्यानां धर्मस्य च धनस्य च || जल की छोटी-छोटी बूँदें जब आपस में मिल जाती हैं तो घड़े को भर देती हैं। इसी तरह ज्ञान, अच्छे कर्म या धन धीरे-धीरे बढ़ते हैं। इसमें हमारे लिए एक संदेश है। अपने आप में, पानी की प्रत्येक बूंद भले ही ज्यादा नहीं लग सकती है। लेकिन जब यह इस तरह की कई अन्य बूंदों के साथ मिलती है तो इसका प्रभाव पड़ता है। अपने आप में, धरती माता के लिए हर अच्छा काम अपर्याप्त लग सकता है। लेकिन जब दुनिया भर के अरबों लोग इसे एक साथ करते हैं, तो इसका प्रभाव भी अत्यंत विशाल होता है। हमारा मानना है कि हमारी पृथ्वी के लिए सही निर्णय लेने वाले व्यक्ति इस धरती के लिए लड़ाई में महत्वपूर्ण हैं। यह ‘मिशन लाइफ’ का मूल है। साथियो, इस आंदोलन के बीज बहुत पहले बो दिए गए थे। 2015 में, संयुक्त राष्ट्र महासभा में, मैंने व्यवहार परिवर्तन की आवश्यकता के बारे में बात की थी। तब से, हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं। अक्टूबर 2022 में, संयुक्त राष्ट्र महासचिव और मैंने मिशन ‘लाइफ’ लॉन्च किया था। सीओपी-27 के परिणाम दस्तावेज की प्रस्तावना भी स्थायी जीवन शैली और उपभोग के बारे में बताती है। साथ ही, यह देखना आश्चर्यजनक है कि जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र के विशेषज्ञों ने भी इस मंत्र को अपनाया है। साथियो, दुनिया भर में लोग जलवायु परिवर्तन के बारे में बहुत कुछ सुनते हैं। उनमें से कई बहुत चिंता महसूस करते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि वे इसके बारे में क्या कर सकते हैं। उन्हें लगातार यह महसूस कराया जाता है कि केवल सरकारों या वैश्विक संस्थाओं की ही भूमिका है। अगर उन्हें पता चलता है कि वे भी योगदान दे सकते हैं, तो उनकी चिंता कार्रवाई में बदल जाएगी। साथियो, जलवायु परिवर्तन का मुकाबला सिर्फ कॉन्फ्रेंस टेबल से नहीं किया जा सकता। इसे हर घर में खाने की टेबल से लड़ना होगा। जब कोई विचार चर्चा टेबल से डिनर टेबल पर जाता है, तो यह एक जन आंदोलन बन जाता है। हर परिवार और हर व्यक्ति को इस बात से अवगत कराना कि उनकी पसंद से धरती को बेहतर बनाने और गति प्रदान करने में मदद मिल सकती है। ‘मिशन लाइफ’ जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई का लोकतंत्रीकरण करने के बारे में है। जब लोग जागरूक हो जाते हैं कि उनके दैनिक जीवन में सरल कार्य शक्तिशाली होते हैं, तो पर्यावरण पर बहुत सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। मित्रो, जन आंदोलनों और व्यवहार परिवर्तन के मामले में भारत की जनता ने पिछले कुछ वर्षों में बहुत कुछ किया है। लोगों द्वारा किए गए प्रयासों ने भारत के कई हिस्सों में लिंगानुपात में सुधार किया। ये वे लोग थे जिन्होंने बड़े पैमाने पर स्वच्छता अभियान का नेतृत्व किया था। चाहे नदियां हों, समुद्र तट हों या सड़कें, वे सुनिश्चित कर रहे हैं कि सार्वजनिक स्थान कूड़े से मुक्त हों। और, ये लोग ही थे जिन्होंने एलईडी बल्बों के प्रयोग को सफल बनाया। भारत में लगभग 370 मिलियन एलईडी बल्ब बेचे जा चुके हैं। यह हर साल लगभग 39 मिलियन टन कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन से बचने में मदद करता है। भारत के किसानों ने सूक्ष्म सिंचाई द्वारा लगभग सात लाख हेक्टेयर कृषि भूमि का कवरेज सुनिश्चित किया। ‘प्रति बूंद अधिक फसल’ यानी ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ के मंत्र को साकार करते हुए इससे भारी मात्रा में पानी की बचत हुई है। ऐसे और भी कई उदाहरण हैं। मित्रो, मिशन लाइफ के तहत, हमारे प्रयास कई क्षेत्रों में फैले हुए हैं, जैसे: स्थानीय निकायों को पर्यावरण के अनुकूल बनाना, पानी की बचत करना, ऊर्जा की बचत करना, अपशिष्ट और ई-कचरे को कम करना, स्वस्थ जीवन शैली को अपनाना, प्राकृतिक खेती को अपनाना, मिलेट्स को बढ़ावा आदि। इन प्रयासों में शामिल हैं: · बाईस बिलियन यूनिट से अधिक ऊर्जा की बचत करना, · नौ बिलियन लीटर पानी की बचत करना, · कचरे को तीन सौ पचहत्तर मिलियन टन तक कम करना, · लगभग एक मिलियन टन ई-कचरे की रीसाइक्लिंग, और 2030 तक लगभग एक सौ सत्तर मिलियन डॉलर की अतिरिक्त लागत की बचत करना। इसके अलावा, यह पंद्रह बिलियन टन भोजन की बर्बादी को कम करने में हमारी मदद करेगा। यह कितना बड़ा है, यह जानने के लिए मैं आपको एक तुलना करने के लिए कहता हूं। फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गेनाइजेशन (एफएओ) के अनुसार 2020 में वैश्विक प्राथमिक फसल उत्पादन लगभग नौ बिलियन टन था! मित्रो, [more…]