प्रौद्योगिकी बड़े खिलाड़ियों तक सीमित नहीं रह सकती – प्रौद्योगिकी के सर्वोत्कृष्ट उपयोग के लिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उपक्रमों तथा स्टार्ट-अप को वित्त तक पहुंचने में सक्षम बनाने की जरूरतः पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन सचिव
नई दिल्ली (IMNB). विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने कॉप-27 में भारतीय मंडप में “टेक्नोलॉजी नीड्स असेसमेंट फॉर सस्टेनेबल लाइफ” विषय पर पैनल चर्चा की मेजबानी की। इसका उद्देश्य था भविष्य में वैश्विक नागरिकों की सुख-सुविधा के लिये प्रौद्योगिकीय जरूरतों की पहचान करना। चर्चा में हिस्सा लेते हुये पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव सुश्री लीना नंदन ने कहा कि आज भारत और विश्व को जिस चीज की जरूरत है, वह है प्रौद्योगिकी। जलवायु परिवर्तन का मुद्दा उन तक सीमित नहीं है, जो उत्सर्जन करते हैं। उन्होंने कहा कि अब इस बात को बड़े पैमाने पर माना और समझा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता; वह हमारे दरवाजे पर दस्तक दे रहा है।
सुश्री लीना नंदन ने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण तमाम आपदा आधारित घटनाओं के रूप में तबाही आई है। आज की चुनौतियों को देखते हुये हमारी जीवन-शैली को बदलना होगा। उन्होंने कहा कि हमारी चर्चा इस बात पर केंद्रित होनी चाहिये कि हम क्या पाना चाहते हैं और उसे कैसे पा सकते है; इसके बीच का जो अंतराल है, उसे कैसे भरा जाये। सुश्री नंदन ने कहा कि विज्ञान तो हमारे पास है, लेकिन अपने कामकाज में विज्ञान और ज्ञान का इस्तेमाल कैसे करना है, इस पर गौर करना होगा। सड़क निर्माण में प्रौद्योगिकी के संदर्भ में उन्होंने कहा कि भारत में विशाल विविधता है, इसलिये एक ही तरह की चीज सबके लिये फिट हो जायेगी, यह विचार गलत है। प्रौद्योगिकी मूल्यांकन भिन्न-भिन्न राज्यों के लिये भिन्न-भिन्न होता है। राज्यों के भू-भाग के अनुसार उनका समाधान निकलता है। सुश्री नंदन ने चक्रिय अर्थव्यवस्था, ‘री-ड्यूस, री-यूज, री-साइकिल, री-स्टोर और री-फर्बिश’ के बारे में भी बात की। इन सभी ‘आर’ को ‘टी’ यानी प्रौद्योगिकी की जरूरत है। उन्होंने विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग से आग्रह किया कि वह राज्य सरकारों को संलग्न करके अभिनव समाधान निकाले।
सुश्री लीना नंदन ने कहा कि छोटे-छोटे केंद्र बनाकर काम करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी केवल इसलिये बड़े खिलाड़ियों के हाथों तक सीमित नहीं रह सकती, क्योंकि उनकी पहुंच वित्त तक है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों तथा स्टार्ट-अप को प्रौद्योगिकी का आदर्श इस्तेमाल करने के लिये वित्त तक पहुंच मिलनी चाहिये।
पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सचिव ने अपने वक्तव्य के अंत में कहा, “हमें बड़ी तस्वीर में अपनी तरफ से थोड़ा-बहुत रंग भरना होगा, तभी एक देश के रूप में हम कह पायेंगे कि हमने जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिये निर्णायक कदम उठाये हैं।”
पृष्ठभूमिः
जलवायु परिवर्तन एक वैश्विक समस्या है और सभी देश उसके दुष्प्रभाव को कम करने के लिये समवेत प्रयास कर रहे हैं। जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पेनल की छठवीं मूल्यांकन रिपोर्ट (नौ अगस्त, 2021) में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन तेजी से हर तरफ फैल रहा है और अगर सभी देश उसका मुकाबला करने के लिये गंभीर प्रयास नहीं करेंगे, तो वह 2040 तक 1.50 सेल्सियस की सीमा लांघ जायेगा। इसलिये सभी देशों को मिलकर प्रयास करना होगा, ताकि संसाधनों की मांग पर नियंत्रण हो, ताकि मांग-आपूर्ति में व्याप्त असंतुलन को हल किया जा सके।
मौजूदा पारिस्थितिकीय, सामाजिक और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने के लिये सतत जीवन की अवधारणा ऐसी होनी चाहिये, जिससे भावी पीढ़ियों की जरूरतों को तिलांजलि न दी जाये। अच्छे जीवन के लिये जरूरत है कि चौबीस घंटे बिजली हो, पीने का पानी मिले, समुचित और पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो और रहने की उचित व्यवस्था हो। सबसे बड़ी चुनौती है इन बुनियादी जरूरतों को निरंतरता बनाते हुये पूरा करने की। यहां इस इको-प्रणाली को कायम रखने के लिये प्रौद्योगिकी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने की क्षमता रखती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने टैक्नोलॉजी इंफॉर्मेशन, फोरकास्टिंग एंड असेस्मेंट काउंसिल (टाईफैक) के साथ पैनल चर्चा का आयोजन किया था, जिसका विषय ‘लाइफ-स्टाइल फॉर एनवॉयरेन्मेंट’ था। इसमें अकादमिक जगत, उद्योग और डीएसटी तथा टीफैक के वैज्ञानिक शामिल थे। इसका उद्देश्य था उन प्रौद्योगिकीय जरूरतों की पहचान करना, जो हितधारकों के लिये प्रासंगिक हैं। सभी क्षेत्रों में भारतीय उत्कृष्ट व्यवहारों को भी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समक्ष आगे चर्चा के लिये प्रस्तुत किया गया।
*****
+ There are no comments
Add yours