बात बेबाक
चंद्र शेखर शर्मा 【पत्रकार】 9425522015
नारायण नारायण
“राष्ट्रीय प्रेस दिवस की हार्दिक बधाईयाँ
30 मई 1826 को पंडित युगुल किशोर शुक्ल जी ने प्रथम हिन्दी समाचार पत्र ‘उदन्त मार्तण्ड’ का प्रकाशन व संपादन आरम्भ कर पत्रकारिता को जन्म दिया । जिसकी याद में हिंदी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है । कालांतर में 16 नवम्बर 1966 को भारतीय प्रेस परिषद का गठन किया गया और प्रत्येक वर्ष 16 नवम्बर को राष्ट्रीय प्रेस दिवस के रूप में मनाया जाने लगा परंतु पत्रकारिता के लगभग 19 दशक से अधिक के सफ़र में प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के बाद कुकरमुत्तों की तरह उग रहे वेब पोर्टलो की बाढ़ के चलते पत्रकारिता के नाम पर जो हो रहा है वह सोचनीय व चिंतनीय है । पत्रकारिता जो कभी एक मिशन हुआ करती थी । कारपोरेट घरानो के प्रवेश के साथ व्यवसाय बन गयी । व्यवसाय बन चुकी पत्रकारिता में शर्म है कि आती नही और बेशर्मी जाती नही । वैसे आजकल पत्रकार बनने के लिए पत्रकारिता की डिग्री होना , अनुभव होना या इसकी ए बी सी डी का ज्ञान जरूरी नहीं बस चमचगिरी का गुण और अंटी में नोट हो भले ही आप अंगूठाछाप हो । पत्रकारिता के गिरते स्तर के चलते विज्ञापन ख़बरों की तरह और ख़बरें विज्ञापनों की तरह परोसी जा रही है । समाज मे कहने को तो पत्रकारिता को चौथा स्तम्भ कहा जाता है परंतु व्यवसायीकरण के चलते समाज के इस चौथे पाये को भी घुन लगने लगा है जिसे चमचागिरी , लालच का दीमक धीरे धीरे खोखला भी करता जा रहा है । व्यवसायिकता के दौर में आज भी पत्रकारिता उंगलियो में गिने जा सकने लायक कर्मठ लोगो की वजह से ज़िंदा है वरना हालात कोठे की बदनाम गली से बदतर हो चले है। पत्रकारिता के चल रहे दौर को देख आदि पत्रकार नारद जी और भगवान विष्णु जी की एक पौराणिक कथा प्रासंगिक लगती है । नारद जी पत्रकार थे तो भगवान विष्णु जी उनके स्वामी हुए । जिनका प्रचार वो हर समय नारायण-नारायण कह कर करते थे । उन्हीं भगवान विष्णु ने एक प्रसंगवश नारद जी को एक दिन बंदर बना दिया था, अंत में बंदर बनने की प्रकिया में लगे तमाम नारद रूपी साथियों को भी राष्ट्रीय प्रेस दिवस की अशेष बधाईयाँ ……..
और अंत में:-
ज़रा सी बात पर शोर करूँ ,
ये मेरी आदत नहीं ।
गहरी जड़ का बरगद हूँ ,
दीवारों पे ऊगा मैं पीपल नही ।।
#जय_हो 16 नवंबर 2021 कवर्धा 【छत्तीसगढ़】
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