यह प्रदर्शनी विश्वविद्यालय परिसर में चल रहे काशी तमिल संगम के हिस्से के रूप में सयाजी राव गायकवाड़ केन्द्रीय पुस्तकालय द्वारा आयोजित की गई है। केन्द्रीय पुस्तकालय ने 1890 के बाद से विभिन्न तमिल ग्रंथों और 17वीं एवं 18वीं शताब्दी में तमिल ग्रंथ लिपि में लिखी गई 12 पांडुलिपियों को प्रदर्शित किया है। इनमें शुरुआती तमिल नाटकों की पहली प्रतियां और एनी बेसेंट को उपहार में दी गई किताबें,तमिल संगीत तकनीकों की व्याख्या करने वाली किताब,कुमारगुरुबारा की किताबें, शैव दर्शन से संबंधित किताबें,भारती किताबें, रामायण, महाभारत के अनुवाद आदि शामिल हैं।
इन बहुमूल्य संग्रहों की प्रदर्शनी 5 दिसम्बर से लेकर 16 दिसम्बर तक 12 दिनों के लिए प्रतिदिन प्रातः 11:00 बजे से सायं 07:00 बजे तक केन्द्रीय पुस्तकालय के केन्द्रीय कक्ष से सटे पाण्डुलिपि एवं दुर्लभ दस्तावेज अनुभाग में चलेगी।
इस प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए श्री कृष्णशास्त्री ने कहा कि यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है कि इन प्राचीन एवं दुर्लभ दस्तावेजों को विश्वविद्यालय के पुस्तकालय में समुचित तरीके से संरक्षित किया गया है। इन दस्तावेजों को जहां उचित रूप से वर्गीकृत किया जाना चाहिए, वहीं इन्हें शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए सुलभ होना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि यह आज की जरूरत है।
उप-पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. सुचिता सिंह ने शिक्षकों, छात्रों और काशी तमिल संगम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस प्रदर्शनी देखने के लिए आमंत्रित किया।
इस अवसर पर सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ क्लासिकल तमिल की निदेशक प्रोफेसर इरा चंद्रशेखरन और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पुस्तकालयाध्यक्ष डॉ. देवेन्द्र कुमार सिंह उपस्थित थे। असिस्टेंट लाइब्रेरियन डॉ. आर. परमेश्वरन और तमिल विभाग के दो असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. टी. जगतीसन,डॉ. सु. विग्नेश आनंद, तमिल अध्ययन के छात्र एवं कार्यकर्ता भी उपस्थित थे।
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