पुरुष-थर्ड जेंडर से ज्यादती रेप नहीं, जेंडर न्यूट्रल कानून की मांग
पीड़ित एक चमड़ा फैक्ट्री में मजदूर है। वह शादीशुदा और बच्चों का पिता है। उसने अपनी पत्नी के कहने पर पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई, मगर यह खबर सोशल मीडिया पर आने के बाद वायरल हो गई।
हिंदुस्तान के कानून की नजर में ऐसी घटना रेप नहीं है। आगे बढ़ने से पहले ये बता दें कि हम महिलाओं के खिलाफ नहीं हैं, न ही हम महिलाओं के शोषण की अनदेखी कर रहे हैं, लेकिन LGBQ, थर्ड जेंडर और पुरुषों के यौन उत्पीड़न के मामलों की रिपोर्ट और बचाव के लिए ऐसा कानून जरूरी है। ऐसा कोर्ट भी बोल चुका है। ऐसे में रेप को जेंडर न्यूट्रल बनाए जाने की दलील को भी सिरे से खारिज नहीं कर सकते।
जालंधर में हुई घटना इस तरह का इकलौता मामला नहीं है जब किसी पुरुष ने अपने साथ ऐसी वारदात की शिकायत की हो। हालांकि भारत में कितने पुरुषों के साथ रेप हुआ, इसका कोई डेटा भी नहीं है। लेकिन समय-समय पर ऐसे मामले सामने जरूर आए हैं।
पुरुषों से रेप के मामले नए नहीं
मुंबई, 2017: स्कूल में पढ़ने वाले 16 साल के किशोर के साथ 15 लड़कों ने पहले गैंगरेप किया, फिर ब्लैकमेल करने लगे।
पवई, 2017: मुंबई के पवई में 13 साल के रेप पीड़ित लड़के ने आत्महत्या कर ली थी।
मुजफ्फरनगर, 2014: उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पुलिस ने 3 कैदियों पर साथ रह रहे कैदी के साथ जबरन यौन संबंध बनाने का मामला दर्ज किया।
शामली, 2014: एक महिला टीचर ने अपने 12 साल के छात्र के साथ रेप किया।
पुरुषों के साथ जबरन संबंध बनाने के मामले में केवल महिला ही नहीं, बल्कि पुरुष भी आरोपी हों तो भी यह रेप की परिभाषा में नहीं आता। आइए आपको मिलवाते हैं ऐसे ही एक रेप सर्वाइवर से जो बचपन में ही कानून और समाज के रवैये से बिखर गया:
7 साल की उम्र से रिश्तेदार ने किया रेप, 12 साल की उम्र में गैंगरेप
भारत में समलैंगिकों के लिए समान अधिकारों की मांग उठाने वाले हरीश अय्यर खुद रेप सर्वाइवर हैं। उन्होंने वुमन भास्कर को बताया कि उनके रिश्तेदार ने 7 से 18 साल की उम्र तक उनका लगातार बलात्कार किया। 11 साल की उम्र में वह सामूहिक बलात्कार के भी शिकार हुए। तब न पोक्सो जैसा कानून था और न ही धारा 377 थी। उन्होंने अपनी आपबीती 1997-98 में दुनिया को बताई। इस बीच उन्होंने 3 बार आत्महत्या करने की भी कोशिश की।
वह कहते हैं कि जब आपके साथ यह सब घट रहा होता है तो आप डरते हैं कि लोगों को पता चल जाएगा। लेकिन जब लोग यह बात जान जाते हैं तो आपको कुछ खोने का डर नहीं होता। उन्होंने अपनी जिंदगी की कड़वी सच्चाई इसलिए लोगों को बताई ताकि जो लोग इसका शिकार हो रहे हैं या हुए हैं, वे उनसे प्रेरित होकर जीने के तरीके ढूंढें। अपनी हिम्मत बढ़ाएं न कि खुद टूट जाएं।
पोक्सो एक्ट के आने के बाद नाबालिग लड़का और लड़की दोनों से यौन अपराध करना रेप की श्रेणी में आता है। इस कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाया गया है।
पोक्सो एक्ट: किसी भी जेंडर के आरोपी को होती है सजा
दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले शिवाजी शुक्ला बताते हैं कि महिला या पशु के साथ अननेचुरल सेक्शुअल रिलेशन बनाने को क्राइम माना गया है। सुप्रीम कोर्ट के अनुसार अगर सेक्शुअल एक्ट दो वयस्कों के बीच सहमति से हो तो यह सेक्शन 377 के तहत क्राइम नहीं माना जाएगा। वहीं, पोक्सो एक्ट में बच्चे के साथ किए गए किसी भी सेक्शुअल एक्ट को क्राइम घोषित किया गया है। इस एक्ट के तहत बच्चे का जेंडर मैटर नहीं करता है। इसी तरह से बाकी धाराओं में भी रेप को जेंडर न्यूट्रल करने की मांग की जा रही है।
निर्भया गैंगरेप के बाद भारतीय कानून में रेप के दायरे को बढ़ाया गया और इसकी परिभाषा भी व्यापक की गई। हालांकि, रेप कानून अब भी जेंडर न्यूट्रल नहीं है।
महिलाओं को इंसाफ दिलाने के लिए बदली रेप की परिभाषा
इंडियन पीनल कोड की धारा-375 में रेप की परिभाषा तय की गई है। इसके तहत किसी महिला से कोई पुरुष जबरन यौनाचार या दुराचार करे तो दोनों ही रेप के दायरे में आएंगे। 2012 में निर्भया गैंगरेप के बाद इस परिभाषा में बड़ा बदलाव किया गया। अब महिला के प्राइवेट पार्ट या शरीर के किसी भी हिस्से को उसकी मर्जी के बिना छूना भी रेप के दायरे में आ सकता है।
महिला की उम्र अगर 18 साल से कम है और संबंध बनाने में उसकी सहमति है तो भी वह रेप होगा। महिला के कपड़े उतारना या बिना उतारे ही उसे संबंध बनाने के लिए पोजिशन में लाना भी रेप माना जाएगा।
2013 में रेप की जगह सेक्शुअल असॉल्ट शब्द लाने की कोशिश
केंद्र सरकार ने 2012 में आईपीसी की धारा 375 में रेप की परिभाषा बदलने की कोशिश की थी, जिसमें रेप के दायरे में पीड़ित पुरुष को भी शामिल करने की बात कही गई थी। मगर, कुछ गैर सरकारी संगठनों और नारीवादी संगठनों ने सरकार के इस प्रस्ताव पर विरोध जताया और कहा कि इससे महिला रेप पीड़िता को लेकर संवेदनहीनता और बढ़ेगी। 2013 में क्रिमिनल लॉ (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस लाया गया, जिसमें रेप और सेक्शुअल हैरासमेंट अपराधों को जेंडर न्यूट्रल बनाया गया। रेप शब्द हटा दिया गया, उसकी जगह सेक्शुअल असॉल्ट शब्द लाया गया। मगर, फेमिनिस्ट ग्रुप के कड़े विरोध के बाद सरकार ने कानून में रेप शब्द को फिर से शामिल किया, जिसमें कानून में पहले जैसी स्थिति बरकरार रखी गई कि पुरुष ही महिला का रेपिस्ट हो सकता है।
कानून की नजर में पुरुष ही हो सकता है रेपिस्ट, महिला नहीं
एडवोकेट शिवाजी शुक्ला कहते हैं कि इंडियन पीनल कोड की धारा 375 में कहा गया है कि बलात्कार केवल ‘पुरुष’ कर सकता है। महिला बलात्कार नहीं कर सकती।
मगर, आईपीसी की धारा 376 में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति बलात्कार का अपराध करता है, तो उसे कम से कम 7 साल से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जाएगी और साथ ही उसे जुर्माना भी देना होगा। यहां महिला या पुरुष के बजाय व्यक्ति कहा गया है। ऐसे में पीड़ित पुरुष को इस धारा में थोड़ी सी राहत मिलती है। शिवाजी शुक्ला कहते हैं कि लेकिन जालंधर जैसे मामलों में इस धारा में केस दर्ज करने से पुलिस बचती है।
जब केरल हाईकोर्ट के जज ने पूछाः झांसा देकर संबंध बनाने वाली महिला का क्या?
दिल्ली के ही तीसहजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत कहते हैं कि महिला द्वारा पुरुष का रेप करने के मामले में कानून स्पष्ट नहीं है। मगर इस पर कोर्ट भी सवाल खड़े कर चुका है। इसी साल 1 जून को केरल हाईकोर्ट के जस्टिस ए मोहम्मद मुश्ताक की पीठ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि IPC की धारा 376 (रेप की सजा का प्रावधान) जेंडर न्यूट्रल नहीं है।
तलाकशुदा महिला और पुरुष में बच्चे की कस्टडी के एक मामले में सुनवाई के दौरान जज ने कहा था कि अगर महिला ने झांसा देकर पुरुष से संबंध बनाया होगा तो क्या होगा? जज ने कहा, जाहिर है उसे सजा नहीं मिलेगी। क्या ऐसा कानूनी संशोधन हो सकता है कि धोखा देकर यौन संबंध बनाने वाली महिला को भी सजा हो?
इससे पहले दिल्ली की एक अदालत की कार्यवाहक चीफ जस्टिस रहीं गीता मित्तल और जस्टिस सी. हरि शंकर की पीठ ने कहा था कि क्या आईपीसी के तहत बलात्कार और उसकी सजा को जेंडर न्यूट्रल करने का कभी सही समय आएगा।
कानून में बदलाव की मांग इसलिए भी उठ रही है क्योंकि रेप पीड़ित पुरुषों के मन पर भी इस घटना का इतना गहरा असर पड़ता है कि वो सामान्य जिंदगी नहीं जी पाते।
रेप के शिकार पुरुष पार्टनर से नहीं बना पाते संबंध: स्टडी
अमेरिका में ‘नो एस्केप: मेल रेप इन यूएस प्रिजंस’ नाम से एक स्टडी में कहा गया कि जेलों में हर साल एक पुरुष कैदी की दूसरे कैदी से रेप की घटनाएं 1 लाख से लेकर 1.40 लाख हो रही हैं। जबकि उसी दौरान पूरे देश में पुरुषों द्वारा महिलाओं के रेप के 90 हजार मामले सामने आए। यानी पुरुषों से रेप के मामले अमेरिका में काफी ज्यादा हैं और वहां रेप कानून जेंडर न्यूट्रल है।
वहीं, 1986 में विलियम एच मास्टर्स ने अपनी स्टडी में पाया कि अगर किसी पुरुष का रेप कोई महिला करती है तो उसकी सेक्शुअल लाइफ खराब हो जाती है और वह अरसे तक अपनी पार्टनर के साथ संबंध नहीं बना पाता है। यह स्टडी ‘सेक्स एंड मैरिटल थेरेपी’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुई।
जिन 96 देशों में यह स्टडी की गई, उनमें से 63 में रेप या सेक्शुअल असाॅल्ट को जेंडर न्यूट्रल पाया गया। वहीं 27 देशों में रेप कानून जेंडर स्पेसिफिक बने थे, जहां के कानून में यह प्रावधान था कि रेप सिर्फ महिला का हो सकता है और पुरुष ही रेप कर सकता है। जबकि 6 देशों में आंशिक रूप से जेंडर न्यूट्रल कानून थे।
दुनिया भर में गे और बाइसेक्शुअल पुरुष रेप के ज्यादा शिकार
अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी ने एक सर्वे किया जिसमें पाया गया कि 30% गे और बाइसेक्शुअल पुरुषों ने यौन शोषण का सामना किया। वहीं, ह्यूमन राइट्स कैंपेन के अनुसार 26% गे, 37% बाइसेक्शुअल और 29% हेट्रोसेक्शुअल पुरुषों के साथ रेप हुआ। 40% गे और 47% बाइसेक्शुअल पुरुष रेप की जगह यौन हिंसा का शिकार हुए जबकि 21% हेट्रोसेक्शुअल पुरुषों के साथ ऐसा हुआ। हेट्रोसेक्शुअल वे महिलाएं या पुरुष होते हैं, जो अपोजिट जेंडर वाले लोगों को पसंद करते हैं।
महिलाएं भी करती हैं महिलाओं का रेप
‘यूएस सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन’ ने एक सर्वे कराया। इसमें 43.8% लड़कियों ने लड़कियों के हाथों ही रेप, यौन शोषण और स्टॉकिंग का शिकार होने की बात स्वीकारी। वहीं, 8 में से 1 लेस्बियन जिंदगी में 1 बार रेप की शिकार हुई।
भारत में पुरुषों से रेप को लेकर आंकड़े और स्टडी न के बराबर
भारत में पुरुषों से रेप को लेकर आंकड़े और स्टडी न के बराबर हैं। मगर, 2013 में ‘ए केस फॉर जेंडर न्यूट्रल रेप लॉज इन इंडिया’ नाम से एक स्टडी कराई गई। स्टडी के दौरान 222 पुरुषों पर एक सर्वे कराया गया, जिसमें सवाल पूछे गए थे कि क्या आप मानते हैं कि महिलाएं पुरुषों का रेप कर सकती हैं? इस पर मिले जवाब चौंकाने वाले रहे। सर्वे में शामिल 79.30 फीसदी लोगों ने माना कि महिलाएं पुरुषों का रेप कर सकती हैं। ऐसा जवाब देने वालों में बड़ी संख्या 18 से 24 साल वालों की रही। वहीं, महज 11 फीसदी ने ही यह माना कि महिलाएं पुरुष का रेप नहीं कर सकतीं।
अमेरिका में 71 में 1 पुरुष, 5 में 1 महिला से होता है रेप
दुनिया के बाकी देशों में यह माना जाने लगा है कि रेप जैसे अपराध महिलाएं भी करती हैं। यह अलग बात है कि भारत या उसके जैसे कई और देशों में महिलाओं द्वारा पुरुषों का रेप किए जाने की घटनाएं ज्यादा रिपोर्ट नहीं हुई हैं और न ही इस पर शोध ही किया गया है। अमेरिका में ‘द नेशनल इंटीमेट पार्टनर एंड सेक्शुअल वाॅयलेंस सर्वे’ (2010) के मुताबिक, 71 में से एक पुरुष का जीवन में कभी न कभी रेप हुआ है। वहीं, 5 महिलाओं में से एक को रेप जैसा क्राइम झेलना पड़ा।
2010 में अमेरिका में पुरुषों से रेप के मामले तकरीबन 15 लाख बताए गए थे, जो बड़ी संख्या है। सर्वे के नतीजों में एक बात खास तौर पर सामने आई है कि 28 फीसदी पुरुष ऐसे थे, जिनके साथ रेप 10 साल या उससे कम उम्र में हुआ था। वहीं, इस उम्र तक 12 फीसदी महिलाओं ने रेप झेला था।
जब पुरुषों पर अत्याचार के आंकड़े देख हीरोइन नहीं हीरो पर बनी फिल्म
सोशल एक्टिविस्ट और फिल्म मेकर इंसिया धारीवाल ने ‘द कैंडी मैन’ नाम की फिल्म बनाने के लिए 1500 पुरुषों के बीच एक सर्वे किया था। इस सर्वे में 71% पुरुषों ने सेक्शुअल अब्यूज की बात स्वीकार की, लेकिन यह बात किसी के साथ शेयर नहीं की।
इसके पीछे उनकी अलग-अलग वजह थी। किसी को यह बताने में शर्म आती है, किसी को पछतावा था तो कुछ डरे हुए थे।
इस बारे में उन्होंने कहा कि सर्वे से पहले इस फिल्म की मेन लीड लड़की थी, लेकिन बाद में इसे बदलकर लड़का कर दिया गया।
एडवोकेट अनिल सिंह श्रीनेत कहते हैं कि भारत में रेप के कानून को जेंडर न्यूट्रल बनाने का मकसद केवल पुरुषों को इंसाफ दिलाना ही नहीं बल्कि इसके दायरे में थर्ड जेंडर और LGBQ कम्युनिटी को लाना भी है। मामला महिला द्वारा पुरुष का रेप करने से बड़ा है। महिला ही किसी महिला का यौन शोषण करती है या फिर इनमें से कोई भी थर्ड जेंडर का यौन उत्पीड़न करे तो इसके लिए कानून में स्पष्ट प्रावधान होने चाहिए।
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