जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
उव 9522170700
वन्देमातरम्
आरक्षण पर आक्रोशित कांग्रेस बुरी तरह तिलमिला रही है। या कहें कि तिलमिलाने का दिखावा कर रही है ताकि जनता में ये संदेश जाए कि कांग्रेस ही आरक्षित वर्ग की सबसे बड़ी खैरख्वाह है। जब तक ये संदेश नहीं जाएगा वोट केसे पकेगा ? जनअधिकार रैली में लाखों लोगों को आने की तैयारी बताई गयी थी। जिलाध्यक्ष और विधायक को अपने क्षेत्र से दस से बारह हजार लोगों को लाने की जवाबदारी दी गयी थी। इसी तरह हर पार्षद को एक हजार का टॉरगेट दिया गया था। निगम,मण्डल और आयोग के पदाधिकारियों से भी दो हजार से दस हजार की भीड़ अपेक्षित थी। अब ये सब समझते हैं कि जो भीड़ लाएगा टिकट के लिये उसकी आवाज में दम दिखेगा। चाहे पैसे देकर और लंच खिलाकर भीड़ लाई गयी हो। वैसे ये कोई अनजानी बात नहीं है। कांग्रेस ही नहीं हर पार्टी के हर आंदोलन में, सभा में भीड़ दिहाड़ी के हिसाब से लाई जाती है और उन्हें खाने के पैकेट भी दिये जाते हैं। इसलिये वही भीड़ कांग्रेस में भी दिखती है और वही चेहरे भाजपा की सभा में भी झण्डे पकड़े दिख जाते हैं। तो ये कहना गलत होगा कि वे उन मुद्दों से सहमत हैं या उन मुद्दों के बारे में जानते भी हैं।
ऐसे में जो अपने व्यवसाय के तहत् पैसे से आते हैं उनके वोट बैंक होने का यकीन कैसे किया जा सकता है ? आंदोलन तो असल में वो होता है जिसमें जनता शामिल हो। हालांकि ऐसे आंदोलन अब होते नहीं जिनमें स्वस्फूर्त प्रेरणा से जनता शामिल होती हो। सरकारी नीतियों ने मध्यम वर्ग को ऐसा जकड़कर रखा है कि वो अपनी रोजी-रोटी के संघर्ष से ही मुक्त नहीं हो पाता तो आंदोलन क्या करेगा ?
नीतिश की बिल्ली खंभा भी नहीं नोच पाई
क्या बुरा हो सकता है ये भी नहीं सोच पाई
उबड़-खाबड़ राह पे दौड़ पड़ी बेसाख्ता
फिर कहती है पैर में कैसे मोच आई
अरे भाई इतनी गुलाटियां खाओगे तो सर फुटव्वल तो होगी ही न। फायदा देखकर जिस चाहे का तिरस्कार कर देते हो। सत्ता की खातिर चाहे जिसके आगे नतमस्तक हो जाते हो। तो भैया कभी न कभी तो ऐसी स्थिति आनी ही थी न। पहले उनको गरियाया, इनको गले लगाया, फिर इनको गरियाया उनको गले लगाया, फिर उनको… फिर इनको… फिर… बस,बस,बस। अब बस अब तो जिसके गले लगोगे समझो गले पड़ोगे, जनता भी उससे चिढ़ने लगेगी। कहीं तो कोई सीमा होनी चाहिये गिरावट की। बिल्कुल ही पेंदा नहीं है। इसीलिये तो अब फंसे हैं।
कहते हैं नशाबंदी लागू रहेगी। पर अपने साथी तेजस्वी एण्ड कंपनी ही मुखर होकर समर्थन नही ंकर पा रही है। जहरीली शराब पीने से मरने वालों को मुआवजा देने की बात पर भी छिछालेदर हो रही है। उपर से लालूपुत्र सर पर नाच रहे हैं सो अलग। कहीं पर भी कोई ठोस सपोर्ट करते नहीं दिख रहा। अपनी ही पार्टी में लोग टांग खींच रहे हैं। लालूपुत्र तेजस्वी का तेज इन्हें जला रहा है। बार-बार प्रश्न उठा रहे हैं कि सत्ता कब सौंपोगे, सत्ता कब सौंपोगे। बिचारे नीतिशकुमार न उगल पा रहे हैं न निगल पा रहे हैं। राजशाही छूटने का दर्द अंदर ही अंदर खाए जा रहा है।
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