हिन्दी को पल्लवित होने दो – डा. गीता शर्मा

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दसपुर। विश्व हिंदी दिवस पर हिंदी की राष्ट्र विकास में महत्ता विषय पर परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन रखा गया। उक्त गोष्ठी में हिन्दी के साहित्यकारों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। हिन्दी साहित्य भारती (अंर्तराष्ट्रिय) कांकेर ईकाइ के द्वारा आयोजित इस कार्याक्रम में गोष्ठी की अध्यक्षता साहित्यकार एवं ज्योतिषी डॉ गीता शर्मा ने किया।

इस अवसर पर अपने विचार रखते हुए एवं अपनी रचना का पाठ करते हुए कवि रोहित सिन्हा ने कहा हमारा राष्ट्र अत्यंत प्राचीन राष्ट्र है और भाषा के क्षेत्र में भी वैभवशाली रहा है। उन्होंने रचना आठ करते हुए कहा सरल सहज और मधुर हो, दुनिया में मशहूर, हिंदी हिंद की शान।

रिजेन्द्र गंजीर ने हिंदी की परिचर्चा में भाग लेते हुए भाषा के महत्व को प्रतिपादित किया एवं भाषा के प्रति एक भाषा एक राष्ट्र को महत्व प्रदान किया। अपनी रचना में कहा मैं हिंदी हूंँ, माथे पर चमचमाती बिंदी हूंँ, आदि से अनंत अनादि तक, साहित्य श्रृंखलाएँ, मेरे ही आंचल में दिख पायें।

हिन्दी साहित्य भारती के महासचिव संतोष श्रीवास्तव सम ने राष्ट्रभाषा हिंदी को विश्व हिंदी पटल पर इंगित करने मत व्यक्त किया। इस हेतु सबके योगदान की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने अपनी रचना में कहा वही हिंदी लाया हूंँ, जो वर्षों मेरे साथ रही, मैं जहांँ भी चला चली, वहीं, मैं जहांँ पे ठहरा थी ठहरी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करती हुई डा. गीता शर्मा ने  हिंदी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की। तथा हिंदी का उज्जवल भविष्य बताते हुए सबके सहर्ष योगदान पर बल दिया। अपनी रचना में उन्होंने कहा राष्ट्रभाषा बन रही हिंदी हूंँ, भारत ललाट की बिन्दी हूंँ, फिर क्यों दुखी हैरान हूंँ, कुछ अपनों से परेशान हूंँ, संस्कार संस्कृति बढ़ने दो, हिंदी को पल्लवित होने दो।

कैलास तारक ने विश्व हिंदी दिवस को सार्थक करने का आव्हान किया। तथा भारतीय संस्कृति के संवर्धन पर बल दिया। इस अवसर पर हिंदी के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त करने वाले अनेक साहित्यकार उपस्थित थे। जिन्होंने अपने शब्दों से हिन्दी के व्यापीकरण पर जोर दिया। उपस्थित साहित्यकारों का आभार हिन्दी साहित्य भारती के अध्यक्ष प्रोफेसर नवरतन साव ने व्यक्त करते हुए विश्व हिन्दी दिवस की सार्थकता पर अपने मत दिये।

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