हम ये पूछते हैं कि पब्लिक से डबल-डबल इंजन वाली सरकार बनवाने का फायदा ही क्या हुआ, अगर भगवा पार्टी वाले इतना भी तय नहीं कर सकते कि पब्लिक को क्या बताना है और क्या नहीं बताना है? बताइए! सरकार चलाने वालों की जान को क्या यही परेशानी कम थी कि जोशीमठ धंस रहा है। सडक़, घर, होटल, बिजलीघर, और तो और फौजी कैम्प तक साथ लेकर धंस रहा है। इतनी तेजी से धंस रहा है कि देखते-देखते दरारें चौड़ी होते-होते इतनी चौड़ी हो गयीं कि इमारतें झुकनी शुरू हो गयीं, लोग घरों को असुरक्षित पाकर खुले में रात गुजारने लगे, आराम से गोद में बैठे मीडिया तक ने भोंकना शुरू कर दिया और बेचारे डीएम से लेकर सीएम, पीएम तक सब को चिंता जतानी पड़ गयी। और सिर्फ चिंता जताने से भी काम कहां चला, बेचारों को दौरों पर जाना पड़ा है, पब्लिक को अपना चेहरा दिखाना पड़ा है और कुछ न कुछ एक्शन की मुद्रा में आना पड़ा है।
पर विरोधी हैं कि बेचारों को इसके बाद भी चैन नहीं लेने दे रहे हैं। उल्टे जोशीमठ जैसी धार्मिक नगरी के धंसने का पाप, मंदिर पार्टी के मत्थे ही मंढने की कोशिश कर रहे हैं। शहर धंंसा क्यों –पूछने का स्वांग कर रहे हैं और डबल इंजन सरकारों की करनियों को मुजरिम बता रहे हैं। वैसे जब देखो तब, ये इसकी शिकायत करते मिलेंगे कि ये क्यों नहीं किया, वो क्यों नहीं करते। और तो और, इसका इल्जाम भी लगाते मिलेंगे कि हिंदू-मुसलमान करने और मंदिर-मंदिर रटने के सिवा, ये तो कुछ भी नहीं करते। पर मौका देखकर झट पल्टी मार गए हैं और कभी बिजली परियोजनाओं के लिए पहाड़ की खुदाई को, तो कभी सडक़ चार लेन की करने के लिए पहाड़ों की कटाई को, सुरंगों की खुदाई को, पहाड़ बैठने के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं। अंधाधुंध विकास के लिए, धार्मिक आस्था के केंद्रों को खतरे में डालने की तोहमत लगा रहे हैं, सो ऊपर से।
खैर, धामी जी भी ने साफ-साफ कह दिया कि यह तो प्राकृतिक आपदा है यानी दैवीय प्रकोप; विरोधी अब क्या ऊपर वाले पर भी इल्जाम लगाने चले हैं? पर ऊपर वाले को बीच में लाकर वह विरोधियों का मुंह अच्छी तरह से बंद करते, तब तक कमबख्त इसरो वाले खामखां में बीच में कूद पड़े। उचक-उचक कर बताने लगे कि आसमान से उनके सैटेलाइट ने नाप लिया है, बारह दिन में जोशीमठ करीब छ: सेंटीमीटर नीचे बैठ गया है। हर दो दिन में एक सेंटीमटर। रफ्तार रहे इतनी ही तब भी, महीने में छ: इंच यानी साल में छ: फुट यानी बंदा पूरा का पूरा गायब! लोगों ने हल्ला मचा दिया कि जोशीमठ तो डूब रहा है। वह तो शाह साहब ने इसरो वालों को धमकाया, तब पट्ठों ने जोशीमठ ही नहीं, देश भर की भी पब्लिक को यह बताना बंद किया कि वह कितने गहरे गड्ढे में है। धामी साहब ने बाकी सब से भी कह दिया कि पब्लिक ने हमें चुना है, फिर तुम कौन होते हो उसे यह बताने वाले कि वह कितने गहरे गड्ढे में है। बताना है या नहीं बताना है, यह हम पर छोड़ दो; तुम तो अपना मुंह बंद ही रखो।
अब विरोधी हल्ला मचा रहे हैं कि पब्लिक को जानने का हक है। होगा, जरूर होगा जानने का हक, पर सरकार को भी तो तय करने का हक है कि पब्लिक को क्या जानने का हक है! गड्ढे में है, पब्लिक के लिए इतना जानना ही काफी है। आखिर, गड्ढे की गहराई का नाप जानकर ही पब्लिक क्या कर लेगी? अब डुबाना और बचाना तो ऊपर वाले के जिम्मे है, पर पब्लिक को किसी गिनती के चक्कर में बेकार का दु:ख, डबल इंजन वाले हरगिज नहीं होने देंगे। इसीलिए तो, जनगणना भी लटकी हुई है — गिनती में ही ऐसा क्या धरा है!
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