जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
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वन्देमातरम्
{ जरा ईधर भी ध्यान दीजिये… ‘जब भी जी चाहे नयी दुनिया बसा लेते हैं लोग, एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग’ फिल्म दाग का ये गीत एक कड़वी सच्चाई है जो हम लोग हर रोज हर जगह चरितार्थ होता दिखता है। जहां ऐसे अनुभव आपको देखने को मिलते हैं वही पर ऐसे मामले भी दिखते हैं जिनमें संबंधों को सर्वाधिक महत्व दिया जा रहा है। निस्संदेह ऐसे मामले विरले हैं और लाखों में कोई एक ऐसा दृश्य दिखता है। तारक मेहता का उल्टा चश्मा में चर्चित चरित्र सुंदर पर उसके जीजा जेठालाल द्वारा मोबाईल चोरी का आरोप लगाए जाने पर उसकी पत्नी दया कहती है कि ‘यदि सुंदर चोर साबित होगा तो मैं सुंदर से रिश्ता तोड़ दूंगी और अगर वो पाक-साफ निकला तो मैं आपसे यानि जेठालाल से नाता तोड़ दूंगी। ऐसी स्थिति में सुंदर ये सोचता है कि अगर वो चोर साबित नहीं हुआ तो उसकी बहन का घर टूट जाएगा और इसलिये वो स्वयं को चोर साबित करने को तैयार हो जाता है। वो अपनी बहन का घर बचाने के लिये खुद को चोर कहलाने को भी तैयार हो जाता है। विरले ही सही ऐसे संबंध आज भी देखने को मिल जाते हैं।}
बड़ी दिलचस्प है राजनीति और उससे भी दिलचस्प होेेते हैं नेताओं के बयान। और उससे भी अधिक दिलचस्प, कहीं ज्यादा दिलचस्प होते हैं नेताओं के पैंतरे… या यूं कहें कि सबसे दिलचस्प होते हैं नेताओं के राजनैतिक निर्णय या सियासी दांव। सियासी दांवपेंच ऐसे होते हैं कि लोग दांतों तले उंगलियां दबाने को मजबूर हो जाते हैं।
बड़ी नाराजगी है टीएस सिंहदेव ‘राजा’ साहब को अपनी पार्टी के स्थानीय नेताओं से। या यूं कहें कि एक ही नेता से जो सियासी कद में उनसे बड़े हो गये हैं। यानि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से। उनके अनुसार उनसे ढाई साल के बाद मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया गया था। हालांकि इस वादे को उनका दावा उनके सहयोगी गलत बताते रहे और सिंहदेव अपनी मायूसी में घिरे रहे। उनकी मायूसी भाजपा के वरिष्ठ लोगों से देखी ने गयी और सबने अपनी सहानुभूति उनके प्रति व्यक्त की।
लिहाजा पत्रकारों को ये पूछने का मौका मिल गया कि भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री भाजपा के वरिष्ठ नेता डाॅ रमनसिंग उनके राजनैतिक कैरियर को लेकर चिन्तित हैं तो इस पर उन्होंने जो जवाब दिया उस पर बाद में गौर करेंगे…..
पहले ये बता दें कि पत्रकारों ने जब भाजपा में जाने की बात पर उन्हें छेड़ा तो उन्होंने साफ मना किया। हर कोई मना ही करता है कि मेरी विचार धारा, मेरे उसूल, मेरे आदर्श मुझे इसकी इजाजत नहीं देते। मेरी हाईकमान पे आस्था, मेरी पार्टी के प्रति निष्ठा आदि… आदि…। फिर अचानक एक दिन ऐसा आता है कि वे तपाक से विरोधी दल में शामिल हो जाते हैं पुरानी पार्टी को कोसते हुए।
मेरे साथ ये करते थे, मेरे साथ वो करते थे। जनता के साथ ऐसा किया, जनता के साथ वैसा किया। मेरे उसूल और आदर्श के खिलाफ काम करने लगे थे। पक्के कांग्रेसी स्व माधवराव सिंधिया के पुत्र पक्के कांग्रेसी ज्यातिरादिन्य सिंधिया का मामला भूले तो नहीं हैं न। जिन्हें कोस-कोस कर सरकार बनाई उन्हीं के गले में बाहें डाल कर लड़िया गये। कद बढ़ गया। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनवा दी और अब स्वयं भी मुख्यमंत्री की लाईन में खड़े हो गये। कोई आश्चर्य नहीं कि नये चेहरे के नाम पे अबकी भाजपा नया नारा दे दे कि ‘देना है अब नया संदेश, सिंधिया से सजेगा मध्यप्रदेश’। तो भैया सिंहदेव का मामला भी कुछ अलग थोड़े ही है। भाजपा को येन-केन प्रकारेण छत्तीसगढ़ वापस लेना है। इसके लिये वो कुछ भी कर सकती है। मुख्यमंत्री न सही गृहमंत्री या और कोई भी अन्य बड़ा पद का वादा कर सिंहदेव को अपने पाले में मिला ले, तो आश्चर्य कैसा ?
तो जब पत्रकारों ने पूछा कि रमनसिंह आपके राजनैतिक कैरियर को लेकर चिन्तित हैं तो उन्होने जवाब दिया कि होना भी चाहिये आखिर वो उनके बड़े भाई हैं। बड़े भाई का छोटे भाई की चिन्ता करना लाजिमी है। तो उनके बयान से ये गुंजाईश बनी रहती है कि जब पलटी मारने में सुअवसर दिखे और मौका मिले तो अड़चन न आए और पितातुल्य बड़े भाई की छत्रछाया बनी रहे। बाद में कहा जा सकता है कि बड़े को छोटे की चिन्ता होने लगी। बड़े भाई ने अपना अधिकार दिखाकर जबर्दस्ती छोटे का उद्धार कर दिया…
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