मुख्यमंत्री ने परंपरागत रूप से अगरिया जनजाति द्वारा लोहा तैयार करने की कला का किया अवलोकन
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने डिंडोरी की अगरिया जनजाति द्वारा हाथ भट्टी से तैयार किए जाने वाले लौह अयस्क की सराहना की। उन्होंने म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् (मेपकॉस्ट) द्वारा लगाई स्टॉल और प्रदर्शनी का अवलोकन किया। उल्लेखनीय है कि अगरिया जनजाति जंग न लगने वाला लोहा बनाने के लिए प्रसिद्ध है। इनका बनाया लोहा नरम होता है। इसका पुराने समय में गोल आकार की तलवारें बनाने में उपयोग किया जाता था। मुख्यमंत्री ने स्वयं धौंकनी चलाकर पूरी वैज्ञानिक प्रक्रिया को समझा।
स्टॉल पर मौजूद मेपकास्ट के निदेशक ने बताया कि दुनिया भर में लोहे के बाजार पर भारत के वर्चस्व का कारण अगरिया जनजाति की लौह कारीगरी में दक्षता है। यह जनजाति मंडला,बालाघाट और सीधी जिलों में रहती है। अगरिया लोग भट्टी में चारकोल अयस्क को समान मात्रा में मिलाते हैं। धौंकनी की एक जोड़ी द्वारा विस्फोट किया जाता है। बांस की नलियों की जरिये मिश्रण को भट्टी तक पहुँचाया जाता है। जैसे ही धातु मल का प्रवाह बंद हो जाता है। यह माना जाता है कि प्रक्रिया पूरी हो गई है। ऐतिहासिक जानकारी के अनुसार दिल्ली के प्रसिद्ध लौह स्तम्भ के निर्माण में अगरिया जनजाति की अहम भूमिका रही है। केन्द्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेन्द्र सिंह ने अगरिया समाज के लोगों द्वारा लोहा बनाने की परम्परागत वैज्ञानिक विधि का अवलोकन करने के साथ स्वयं धौंकनी को चलाकर भी देखा।
मुख्यमंत्री ने अनेक स्टॉल का अवलोकन किया और युवा वैज्ञानिकों तथा स्टार्टअप से जुड़े उद्यमियों से चर्चा की। केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी तथा पृथ्वी विज्ञान मंत्री श्री जितेंद्र सिंह ने मैनिट में ही स्टार्टअप कांक्लेव का फीता कटकर शुभारंभ किया। उन्होंने नए उत्पादों का लोकार्पण और कांक्लेव की पुस्तिका का भी विमोचन किया।
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