वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम 26 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर विशेष अंधेरे में रखे गये जिन्होंने सतत् जेलों का स्वाद चखा मजे मारे जिन्होंने मखमल के नीचे कदम नहीं रखा

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0वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम

026 जनवरी: गणतंत्र दिवस पर विशेष

0अंधेरे में रखे गये जिन्होंने सतत् जेलों का स्वाद चखा
मजे मारे जिन्होंने मखमल के नीचे कदम नहीं रखा
नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती 23 जनवरी को पड़ती है। नेताजी ने जो देश के लिये किया वो भुलाया नहीं जा सकता। सबसे दिलचस्प बात ये है कि वे ही भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। दरअसल वे अखण्ड भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। 21 अप्रैल 1943 क 21 अप्रैल 1943 को उन्होंने पद की शपथ ली थी। आज कल्पना करना भी कठिन है कि उस दौर में उन्होंने आजाद हिन्द फौज को खड़ा किया था। इस फौज का अपना पूरा तंत्र था। नेताजी की अपनी पूरी सरकार  थी। अपनी करेंसी थी। अफसोस इस बात का है कि किसी षड्यंत्र के तहत् पूर्व सरकारों ने उन्हें भुलाने की मुहिम चलाई। 2014 में मोदी सरकार आनेे के बाद देश के सामने उनकी काबिलियत को प्रदर्शित किया गया। उनसे संबंधित 300 फाईलों को सार्वजनिक किया गया। पहले ये तर्क देकर कि अन्य देशों से संबंध खराब हो सकते हैं इन फाईलों को गुप्त रखा जा रहा था।

बिना माफी मांगे सजा माफ…. जिनकी
बिना माफी मांगे जिनकी सजा माफ कर दी गयी। वो नेहरूजी थे। किसी मामले में नाभा जेल में उन्हें रखा गया था। जहां तीन दिन में वे हलाकान हो गये। तब उनके पिता ने चकरी चलाई और उन्हें सेवक भी दिया गया और कपड़े धुलने जाने लगे और तमाम सुविधाएं प्रदान की जाने लगीं। खाना और फल मिलने लगे। लिखने-पढ़ने के लिये कागज कलम….  आदि…. आदि…. । इसके बाद कोर्ट ने उन्हें दो साल की सजा सुनाई गयी। मजे की बात देखिये पंडित जवाहर लाल नेहरू को दोपहर को दो साल की सजा सुनाई गयी और शाम होते-होते ब्रिटिश गवर्नर ने अपनी स्पेशल पावर का प्रयोग करके सजा माफ कर दी। संदर्भवश ये भी बता दें कि भगतसिंग, राजगुरू और सुखदेव को फांसी से बचाया जा सकता था यदि गांधी जी चाहते। इतिहास में दर्ज है कि गांधी के आगे लाचार अंग्रेज सरकार को इन तीनो बागियों की सजा माफ करने के लिये गांधीजी बाध्य कर सकते थे लेकिन न जाने क्यों उन्होंने दिलचस्पी नहीं ली।

गलत निर्णय देश का दुर्भाग्य
अब कल्पना करें कि यदि 1947 में आजादी के समय जवाहर लाल नेहरू के बजाए सुभाषचंद्र बोस ने शपथ ली होती और वे प्रधानमंत्री बनते तो शायद देश का नक्शा ही कुछ और होता। कहा तो ये भी जाता है कि यदि प्रधानमंत्री सरदार पटेल ही बन जाते तो देश तर जाता। दुर्भाग्य से कांग्रेस के हाथ में बागडोर चली गयी, जिस कांगे्रस का जन्म ही हिन्दुस्मान की जनता को बेवकूफ बनाने के लिये हुआ था। कम ही लोग ये जानते हैं कि कांग्रेस का गठन जनता की बगावत से अंग्रेजों को बचाने के लिये अंग्रेजों द्वारा ही किया गया था। एक अंग्रेज कलेक्टर इसके प्रथम अध्यक्ष बने थे। वैसे ये बताना भी आवश्यक है कि महात्मा गांधी जिन्होंने अपने नेहरू के प्रति प्रेम के कारण उन्हें जबर्दस्ती प्रधानमंत्री बनवाया था, आजादी के बाद खुद भी कांग्रेस का खत्म करने के हिमायती थे। वे चाहते थे कि कांग्रेस का लक्ष्य पूरा हो गया और उसे समाप्त कर देना चाहिये। लेकिन सत्ता लोलुपता के चलते कांग्रेसियों ने उन्हें ही किनारे कर दिया।

और अब…. अमेरिका के डण्डे पे भारत का झण्डा
आज देश के हालात् देखिये। अमेरिका के डण्डे पे भारत का झण्डा दिखने लगा है। दिखता पहले भी था पर अब मुखर हो गया है। अमेरिका में भारतीयों की तारीफ पे तारीफ हो रही है। आबादी के हिसाब से वहां मात्र एक प्रतिशत हैं लेकिन टैक्स में भागीदारी पौने छह प्रतिशत है। डाॅक्टर हैं, इंजीनियर हैं, समाज सेवी हैं, नेता हैं। टाॅप पर हैं। नाम कमा रहे हैं। भारत का नाम उंचा कर ररहे हैं। कानून को मानते हैं और चुनावों में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। मोदीजी सहित हर भारतीय भारत माता का नाम उंचा करने में भागीदार है।
बता दें कि ये वही अमेरिका है जिसने एक समय मोदीजी को अमेरिका आने की अनुमति नहीं दी थी और आज उनके लिये पलक पावड़ें बिछा कर रखता है।

जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
उव 9522170700
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‘बिना छेड़छाड़ के लेख का प्रकाशन किया जा सकता है’
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