वरिष्ठ पत्रकार जवाहर नागदेव की बेबाक कलम… जीवन की गाड़ी के लिये भी कंट्रोलर चाहिये

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{कवि की कल्प्ना – एक कवि ने कहा कि हमारे यहां जब संसद पर आक्रमण हुआ था तो आतंकवादियों से लड़ते हुए सिपाहियों ने ये कहा होगा – ‘भाई आप कितने भी बड़े आतंकी हो पर हम बिना चुनाव जीते आपको अंदर नहीं जाने देंगे’}

मोड़ पर गाड़ियों को बहुत सावधानी के साथ संभालना पड़ता है। लेकिन आमतौर पर होता ये है कि मोड़ पर स्पीड अपेक्षाकृत कम कम होती है जिससे अनबैलेंस होकर गाड़ी फिसलती या पलटती है और हादसे हो जाते हैं। कुछ बरस पहले सरकार ने ये निर्णय लिया कि अधिकतम् 9 सीटों वाली गाड़ियों में स्टेबिलिटी कंट्रोल सिस्टम लगाना अनिवार्य करने का फैसला लिया था। कटीले मोड़ों पर एकाएक ब्रेक लगाने से पिछले टायर की पकड़ कमजोर हो जाती है और उनके फिसलने से गाड़ी अनियंत्रित होने लगती है। स्टेबिलिटी कंट्रोल सिस्टम ये करेगा कि गाड़ी की स्पीड कम करने से गाड़ी का झुकाव और सड़क पर पकड़ एडजेस्ट हो जाएगी और अनियंत्रित होने की आशंका कम होगी।
वास्तविकता तो ये है कि प्रायः कम उम्र के अनुभवहीन चालक इतना तेज चलते हैं कि नियंत्रण मुश्किल हो जाता है जबकि अनुभवी चालक समझदारी से मोड़ को पहले ही भांप लेते हैं और आराम से स्पीड पर नियंत्रण करके गाड़ी सुरक्षित निकाल लेते हैं।
अब इस पूरे मामले को जीवन से जोड़कर देखिये। जीवन की गाड़ी में भी अनुभवी लोग नियंत्रण अच्छा करते हैं अपेक्षाकृत अनुभवहीन लोगों के। जीवन के मोड़ पर भी अपनी रफ्तार को कम करना आवश्यक होता है। और जैसे सरकार स्टेबिलिटी कंट्रोल करने का प्रयास करती है वैसे ही संत लोग या परिवार/समाज के बड़े लोग जीवन को कंट्रोल करने का प्रयास करते हैं। निश्चित रूप से किसी भी विवाद का हल बातचीत से संभव है और बातचीत के लिये मिडियेटर होना आवश्यक है जो दोनों पक्षों की तुनममिजाजी पर मामले को संभाले और दोनों पक्षों की बातों को समझकर, किसी को थोड़ा डांटकर तो कभी थोड़ा पुचकार कर मतभेद को दूर कर करे। समझौता कराए।
मीडियेटर होने से झगड़ा सुलझ ही जाएगा इसकी गैरेंटी नहीं है। लेकिन मीडियेटर होने से झगड़ा सुलझने की संभावना 99 प्रतिशत बढ़ जाती है। शर्त ये है कि मीडियेटर ईमानदार होना चाहिये। आजकल के दिखावटी समाजसेवियों की तरह नहीं जो केवल अपने मतलब के लिये, अपने फायदे के लिये, अपने नाम के लिये मध्यस्था करते हैं।
लेकिन अफसोस इस बात का है कि आज के वातावरण में कोई भी किसी के बीच पड़ना नहीं चाहता। ये काॅमन सा डायलाॅग है – ‘आजकल अपनी ही समस्याओं को सुलझाने का टाईम नहीं मिलता, दूसरे के मामले में कहां पड़ोगे’? तो बस यही कारण है कि घर टूटते हैं, संबंध टूटते हैं, भावनाएं आहत होती हैं।

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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
Mo. 9522170700

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