{अपनों से अपमान, गैरों ने बढ़ाई गरिमा – हमारे देश में व्यक्तिगत घृणित स्वार्थ के लिये अपने ही धर्मग्रन्थों को अपमानित करने का फैशन चल पड़ा है। कभी गीता को तो कभी रामचरित मानस को घेरे में लिया जाता है और अपमानजनक बातें कही जाती हैं। दूसरी ओर ये सर्वविदित है कि गीता को अमेरिका सहित कई देशों में पढ़ा जाता है। कई देश गीता से प्रेरणा लेते हैं। ईधर न्यूजीलैण्ड से खबर आई है कि वहां हिंदू स्कूल खुल रहे हैं और हिंदी शौक से पढ़ाई जा रही है। लोग हिंदी सीखने के लिये आतुर हो रहे हैं। मजे की बात ये कि वहां पर गीता और रामायण के प्रति आसक्त हो रहे हैं। भारत के लोग तो हिंदी में दिलचस्पी ले ही रहे हंै वहां के स्थानीय लोग भी धीरे-धीरे गीता-रामायण में रूचि दिखा रहे हैं।}
एकाएक एक युवक की फोन आई बोला ‘सर आप जवाहर भैया बोल रहे हैं। मैने अनुमान लगाया कि किसी युवा पत्रकार ने फोन किया है। मैने कहा हां भाई आप कौन ? वो बोला ‘भैया मैं फलां भैया जी के यहां से बोल रहा हूं, दरअसल भैया ने समाज के वरिष्ठ लोगों की एक बैठक रखी है जिसमें शहर के अलग-अलग समस्याओं पर विचार किया जाएगा और समाधान खोजा जाएगा, आपको खास तौर पर बोलने को बोला है भैया ने’। लड़के की बात सुनकर मैं अंदर तक जल-भुन गया और सोचा खरी-खरी सुना दूं – यू ंतो सामनें देखकर पहचानते तक नहीं। साथ पढ़े हैं इतनी भी क्या बेरूखी ? मैं क्या तुमसे कुछ मांग रहा हूं ? इतना घमण्ड’। बहरहाल पुराने सहपाठी का राजनैतिक कद काफी बढ़ गया था लिहाजा ऐसा वैसा बोलने की हिम्मत नहीं हुई। तो मैने कहा हां भाई बुलाने के लिये धन्यवाद, मैं देखता हूं कि उस दिन फ्री हूं कि नहीं।’
फिर लड़के ने जो बात कही उसे सुनकर मैं उसे इन्कार नहीं कर सका। उसकी बात में विशेष स्नेह झलक रहा था। उसने बड़ी ही मासूमियत से कहा देखिये भैया, आपको भैया ने विशेष आग्रह किया है। कोशिश करियेगा आने की। बैठक 2 बजे रखी गयी है फलां होटल में और भैया ने बोला है कि भोजन वहीं पर आपके साथ ग्रहण करेंगे।’ लड़के की इस बात से मैं द्रवित हो गया और मेरी जलने-भुनने वाली स्थिति से उबर गया। खरी-खरी सुनाने का मूड चेंज हो गया। आखिर भैया को लंच मेरे साथ जो करना था। बड़ा सम्मान दिया जाने वाले था मुझे…. वैसे भी मैं कुछ कर नहीं सकता था।
बहरहाल… इतने उंचे होटल में भैया के साथ लंच और गंभीर मुद्दों पर बैठक… किसी को बताने में ही गर्व का अनुभव होगा। जब मै नियत समय पर होटल पहुंचा तो देखा अपने से छोटे कद के जिन लोगों को मैं भैया के साथ बैठक की कहानी गर्व से बताने वाला था वे पहले से मौजूद थे। एक-दो नहीं, हमारे मोहल्ले के आठ सौ लोग। पूरा मेला लगा था। तब समझ में आया कि शहर में सुधार के नाम पर बुलवाकर ये चुनाव की तैयारी चल रही थी। अपना दिल बैठ गया। कसम से खाने का प्रोग्राम नहीं होता तो कब का निकल लेता। भूख भी लगी थी और कई दिलचस्प कैरेक्टर वहां नजर आ रहे थे। और फिर इन सारे कलाकारों पर स्टोरी तो बनती ही थी। मानसिक क्षुधा भी शान्त होनी थी। तो वहीं टिके रहा और मेजबान भैया सारे लोगों से बेहद आत्मीयता के साथ मिल रहे थे। साफ तौर पर वहां पर भैया की तारीफों की पुल बांधे गये और ये जताया गया कि शहर की सारी समस्याओं को कोई दूर कर सकता है तो वे हैं ‘भैया’। ये समझ में आ गया कि सारा प्रायोजित प्रोग्राम था।
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
mo. 9522170700
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