भाई हम तो मोदी जी के विज्ञान के प्रेम के कायल हो गए। मोदी जी का एकदम शुरू से ही साफ है। उनके राज में विज्ञान के नियमों के साथ कोई समझौता नहीं होगा। विज्ञान के नियमों को बेरोक-टोक अपना काम करने दिया जाएगा –ईडी, सीबीआइ वगैरह की तरह। अब विज्ञान के नियमों का ख्याल नहीं होता, तो क्या मोदी जी बीबीसी पर आयकर वालों का छापा पडऩे देते? मुफ्त में गुनाह बेलज्जत! पर मोदी जी विज्ञान की अपनी मोहब्बत के हाथों मजबूर हो गए। न्यूटन ने हाथ पकड़ लिया — क्रिया के खिलाफ प्रतिक्रिया के नियम को काम करने देना होगा। डॉक्यूमेंटरी के जरिए बीबीसी वालों ने कुछ छापा है, तो जवाब में आयकर का छापा तो बनता ही है। छापा, तो छापा!
पर विरोधियों की अवैज्ञानिकता हैरान करती है, उसका क्या? क्रिया की प्रतिक्रिया का सिंपल नियम तक नहीं समझते। उल्टे अमृतकाल चालू है और ये गोरों की दिमागी गुलामी में ही जकड़े हुए हैं। बीबीसी के लिए एक पैमाना है और मोदी जी के लिए दूसरा। बीबीसी छापे, तो यह प्रैस की स्वतंत्रता का मामला है। पर मोदी जी का आयकर विभाग छापा मारे, तो प्रैस की स्वतंत्रता पर हमला है! छापे की क्रिया एक ही है। पर बीबीसी करे तो प्रैस की स्वतंत्र रासलीला और आइटी करे तो, मोदी जी की डैमोक्रेसी का करैक्टर ढीला! और जो ये विरोधी इसकी पिन-पिन कर रहे हैं कि छापा नहीं, आयकर का सर्वे था, तो तीन दिन सर्वे क्यों चला, पत्रकारों के फोन जमा क्यों कराए, कंप्यूटर जब्त क्यों किए, 2012 से खातों की जांच का क्या मतलब है वगैरह, उन्होंने न्यूटन के गति के तीसरे नियम का ठीक से रट्टा नहीं लगाया लगता है। विज्ञान का यह नियम तो बराबर और उल्टी प्रतिक्रिया का है। सिंपल है। डॉक्यूमेंटरी की दो किस्तें, सर्वे के तीन दिन। 2002 के गुजरात पर डॉक्यूमेंटरी, सर्वे फिर भी 2012 से ही।
और प्लीज कोई मोदी जी को इसका डर दिखाने की कोशिश नहीं करे कि प्रैस स्वतंत्रता सूचकांक में नये साल में इंडिया 142वें नंबर से भी और नीचे लुढक़ जाएगा। नंबर बढ़ेगा ही तो; उसकी पश्चिमी व्याख्या हम क्यों मानेें? हम ग्राफ को ही उलटकर टांग देंगे और नया इंडिया तेजी से ऊपर चढ़ता नजर आएगा। यानी वैज्ञानिकता की वैज्ञानिकता और प्रैस की स्वतंत्रता ऊपर से।
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*
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