लेख जवाहर नागदेव बात दया दिखाने की नहीं है लेकिन हम लोग हैं ही ऐसे। कोई कितना भी गलत चला हो, किसी ने कितना भी पाप किया हो भ्रष्टाचार किया हो, जब उसे सजा मिलती है तो दिल के किसी कोने में उसके लिये सहानुभूति जरूर पैदा होती है। जो इस वक्त हो रही है उद्धव ठाकरे के प्रति।
उससे भी अधिक ठाकरे खानदान के प्रति और सबसे अधिक माननीय श्रद्धेय हिंदु शेर बाला साहब ठाकरे के प्रति। वे क्या थे और ये क्या हैं। जिस शिवसेना को अपनी बहादुरी, साहस, दिमाग और कलम से खड़ा किया था कि देश की राजनीति में उसका असर दिखने लगा था। जिस ईमानदारी के साथ वे राजनीति करते थे वो बेमिसाल है। इतनी ईमानदारी और वचनबद्धता कि देश का बड़े से बड़ा नेता, चाहे वो किसी भी पद पर हो, देश का बड़े से बड़ा अभिनेता चाहे वो विदेश तक लोकप्रिय क्यों न हो उनके दर पर माथा टेकने जाता था। बाला साहब ठाकरे शायद ही कभी किसी के दरवाजे गये हों। सारे उनके आगे ही आते थे। आज उन्हें कितना दुख हो रहा होगा सिर्फ अपनी संतान के कारण। सत्ता गयी, रूतबा गया, पैसा गया, पद गया और सबसे बड़ी बात हिंदुत्व गया। यानि सबकुछ गंवा दिया उद्धव ठाकरे ने निजी व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये… ।
बेहद बेहतरीन कलाकार शबाना आज़मी…
ध्यान रहे बेहतरीन कलाकार कहा है बेहतरीन इंसान नहीं।
क्योंकि बेहतरीन कलाकार बेहतरीन इंसान भी हो ये आवश्यक नहीं। जैसे कि खान बंधु…
जैसे कि नसीरूद्दीन शाह….
जैसे कि अमिताभ बच्चन…. जैसे कि जया भादुड़ी…. खैर लंबी लिस्ट है ऐसे लोगों की जो किसी न किसी क्षेत्र में उंचाईयों पर हैं लेकिन मानवता या राष्ट्रहित मे उनकी सोच निम्नस्तरीय है।
तो बेहतरीन कलाकार शबाना आज़मी, बेहतरीन कलाकार स्मिता पाटिल और बेहतरीन कलाकार कुलभूषण खरबंदा की
एक बेहतरीन फिल्म आई थी ‘अर्थ’।
इसमें शबाना कुल की पत्नि हैं और स्मिता कुल की प्रेमिका।
तमाम कोशिशों और अनुनय-विनय, रोने-धोने के बाद भी कुल शबाना को छोड़ देता है और अंत में खुलेआम स्मिता के पास चला जाता है। यानि पत्नी को छोड़कर प्रेमिका के पास….
तब आश्चर्यजनक रूप से स्मिता पाटिल यानि कुल की प्रेमिका उसे नकार देती है।
स्मिता पाटिल कहती हैं कि ‘जो ज़िंदगी 7 साल में पूजा (शबाना) को सिक्यूरिटी नहीं दे सकी वो मुझे क्या देगी’ और इस डर से कुल की प्रेमिका अपने प्रेमी कुज को दुत्कार दिया।
‘अगर मैं तुम्हारे साथ वहीे करती जो तुमने मेरे साथ किया और फिर लौटकर आती तो क्या तुम मुझे अपना लेते…. ? तब कुलभूषण ईमानदारी से कहता है ‘नहीं’। अपने पति कुलभूषण का जवाब सुनकर शबाना कहती है ‘गुडबाय’ और चल देती है
यानि पति कुलभेषण को ठुकरा देती है।
याद करिये एक समय अपने उद्धव भैया कुलभूषण खरबंदा की तरह बार-बार अपने रूठे विधायकों को मार्मिक ढंग से बुलावा भेज रहे थे।
लेकिन लगातार लंबे समय तक उपेक्षित, अपमानित शिवसेना विधायक अगर पूछते उद्धव ठाकरे से कि
‘जो तुमने हमारे साथ किया, हम तुम्हारे साथ करते और फिर लौट आने की अपील करते तो क्या तुम हमारी अपील स्वीकार कर लेते, लौट आते।
उद्धव में ईमानदारी हो या न हो… राजनैतिक पण्डित इन परिस्थितियों में इसका सही जवाब जानते हैं ‘नहीं’।
इक तरफ उपेक्षा का इतिहास। उपर से लौट आने की धमकियों के बाद भी मिली असफलता। और उद्धव द्वारा इस असफलता के कारण उपजी हताशा से उत्पन्न भावनाओं का दिखावा
दूसरी तरफ देवेन्द्र फड़नवीस समर्थित एकनाथ शिंदे का गुट, मान-सम्मान, सत्ता का सुख, पब्लिक समर्थन और सबसे बड़ी पार्टी और सबसे बड़े नेता मोदीजी का आशीर्वाद।
एक तरफ अमानवीय दादागिरी और दूसरी तरफ राष्ट्रहित और जनहित में काम करने की मानवीय मंशा।
ऐसे में क्या उद्धव ‘शिंदे की जगह’ होते तो लौट आते ? कतई नहीं। मामला साफ है शिंदे एण्ड कंपनी का जवाब भी नहीं ही था जो एकदम सही रहा।
सियासत में दयाभाव और मुरव्वत का स्थान नहीं।
सियासत में लंबे लक्ष्य लेकर चलना लाभदायक होता है, भावुक होकर निर्णय नहीं लिये जाते।
निस्संदेह उद्धव खुद भी होते तो यही करते जो शिंदे ने किया और जो फिल्म अर्थ में शबाना आजमी ने किया था। रील लाईफ में कुलभूषण खरबंदा ने सबकुछ खो दिया और रीयल लाईफ में उद्धव ठाकरे ने।
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