हंसे तो फंसे! (व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)

Estimated read time 1 min read

मोदी जी का दु:ख गलत नहीं है। पौने नौ साल हो गए बेचारों को इंतजार करते कि कोई आलोचक आए, कोई आलोचक मिले, पर कोई आलोचक ही नहीं मिला। मिले भी तो गालियां देने वाले, झूठे-सच्चे इल्जाम लगाने वाले। एक ढंग की दलील नहीं। अब बताइए, कह रहे हैं कि कांग्रेस के प्रवक्ता को हवाई जहाज से उतार कर गिरफ्तार किया गया, ऐसे हवाई जहाज से गिरफ्तार तो इमर्जेंसी में भी नहीं किया गया था। इससे तो इमर्जेंसी ही अच्छी थी! कम से कम हवाई जहाज के टिकट का सम्मान तो था। अब बताइए, ऐसी दलीलों पर मोदी जी हंसें या रोएं!
और विरोधियों की इस दलील का क्या कि इमर्जेंसी में भी कम-से-कम किसी का मजाक उड़ाने के लिए जेल में नहीं डाला गया था। इंदिरा गांधी के बाप का नाम बिगाडक़र लेने वाले को भी नहीं। इसलिए भी, इमर्जेंसी इससे तो अच्छी थी! इमर्जेंसी इसलिए भी अच्छी थी, इमर्जेंसी उसलिए भी अच्छी थी, तो मोदी जी क्या करें? इमर्जेंसी चाहिए? चाहिए तो साफ कहो! पर विपक्षी वह भी साफ नहीं कहेंगे, कि इमर्जेंसी चाहिए। मोदी जी को इन विरोधियों ने इतना नाउम्मीद किया है कि पूछो ही मत। अब मोदी जी इन्हें कैसे समझाएं कि वह तो पवन खेड़ा क्या किसी को भी जेल भिजवाने के खिलाफ हैं। वह अपने मुंह से क्या कहें, पर उन्हीं की पॉलिसी के चलते ही तो, एकदम ताजा जुनैद-नासिर हत्याकांड समेत, मॉब लिंचिंग टाइप के सभी मामलों से जुड़े लोग, न सिर्फ जेल से बाहर हैं बल्कि पॉलिटिक्स में दिन दूनी, रात चौगुनी तरक्की भी कर रहे हैं। नफरती बोल बोलने वालों की बोलने की आजादी के डंके तो, सारी दुनिया में बज रहे हैं। पवन खेड़ा भी बोलते ही तो रहते थे, पूरी आजादी थी।

मोदी जी को तो बस अस्वच्छता से प्राब्लम है। बल्कि बर्दाश्त नहीं है। जो मोदी जी गंदगी दूर करने के लिए खुले में शौच करने वालों पर पुलिस के डंडे बरसवा सकते हैं, बाप का नाम गलत लेने वालों को क्या छोटी-मोटी जेल भी नहीं करा सकते हैं? रही खुद भी राष्ट्रपिता के बाप का नाम गलत लेने की बात, तो वह तो गलती थी। मोहनलाल कहकर मोदी जी हंसे थे क्या? गौतमदास कहकर पवन जी क्यों हंसे? हंसे तो फंसे!

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

You May Also Like

More From Author

+ There are no comments

Add yours