अत्यंत प्रचलित कहावत है ‘दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है’। यहां बात सियासी प्रतिस्पर्धा की हो रही है। सियासी संदर्भ में दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बनाने में फायदा होता ही है।
एक ही पार्टी में रहने वाले एक ही कद के नेता आपस में दोस्त हांे ये लगभग नामुमकिन होता है। क्योंकि कद समान होने से लक्ष्य भी समान हो जाता है। जाहिर है इससे प्रतिस्पर्धा होगी ही। किसी समय में प्रदेश में डाॅ रमनसिंह के सियासी दुश्मन कांग्रेसी अजीत जोगी का कद मुख्यमंत्री पद के लायक था चूंकि वे प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री थे तो निस्संदेह उससे कम उन्हें कुछ भी पसंद नहीं था।
सब जानते हैं कि उनकी महात्वाकांक्षा और काबिलियत किसी प्रकार कम नहीं थी। साफ तौर पर राजनैतिक पण्डित कहते रहे हैं कि भाजपा की सरकार बनाने में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की अहम् भूमिका रही। कहा जाता है कि जोगीजी का साफ कहना था कि मैं {मुख्यमंत्री} नहीं तो और कोई भी {यानि कोई कांग्रेसी भी} नहीं। इसकी विस्तृत व्याख्या जरूरी नहीं, ये बात कई बार चर्चा में रही है।
आहत सिंहदेव जोगीजी के रस्ते पे चले तो….
तो क्या इस बार सिंहदेव भी अपने आत्मसम्मान पर हुए आघात का बदला भाजपा को सहयोग करके ले सकते हैं। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कई बार वे अपनी व्यथा व्यक्त कर चुके हैं। इन्हीं हालात में ये तक कह चुके हैं कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। इसके क्या मायने हैं।
यदि वे लड़ेंगे नही ंतो इसका मतलब वे सक्रिय नहीं होंगे। सक्रिय नहीं होंगे तो अपने आप उनके समर्थकों में ये संदेश जाएगा कि उनके आदर्श क्यांे आहत हैं और क्यों घर बैठे हैं। आहत समर्थक अपने आदर्श के मन की बात समझने में भूल नहीं करेंगे।
तो क्या पर्दे के पीछे शान्त बैठकर सिंहदेव अपने मन की बात सुनेंगे और मन की बात करेंगे ? और यदि उनका मन कांग्रेस की तरफ से नाखुश है तो फिर वे मन के कहे अनुसार कांग्रेस से दोस्ती तो नहीं ही निभाएंगे न। अब प्रश्न ये उठता है कि कांग्रेस को अधिक नुकसान कैसे हो सकता है, आम आदमी पार्टी का हाथ थामकर अथवा भाजपा के कंधे पे हाथ रखकर ?
यदि सिंहदेव ने रमन के गले में हाथ डालके ‘ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे’ गाया तो भूपेश को ‘ये क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ… ’ गाना पड़ सकता है। यदि उन्होंने आम आदमी पार्टी का हाथ थामा तो कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। आमा आदमी पार्टी कांग्रेस को ही नुकसान पहंुचा सकती है जैसा कि गुजरात में हमने देखा, लेकिन इससे सिंहदेव को विशेष लाभ होगा ऐसा नहीं लगता।
सिहंदेव का सुकून आम आदमी से
या भाजपा से
क्योंकि सब जानते हैं कि आम आदमी पार्टी की हालत खराब है। जितनी सफलता गुजरात में मिली है, उतनी भी नहीं मिलेगी। उपर से मनीष सिसोदिया का जेल जाना भी जनता को खुश कर रहा है। गौरतलब है कि पीड़ित, शोषित, निरीह जनता हर बार किसी ‘दमदार’ के पकड़ाने से संतोष की सांस लेती है। आम आदमी पार्टी से नाराजगी इसलिये भी देश को अधिक है कि इससे देश ने कुछ अधिक ही उम्मीदें पाल ली थीं। कट्टर ईमानदार, कट्टर ईमानदार बोल-बोल कर इन बे-ईमानों ने इन शब्दों का वजन ही कम कर दिया है।
तो ये एकदम सामान्य कयास लगाई जा सकती है कि भाजपा से गठजोड़ में सिंहदेव को सियासी फायदा और आहत मन को सुकून मिलेगा। और फिर भाजपा तो वैसे भी उन्हें आवाज पे आवाज दे रही है, कातर मन से पुकार रही है। डाॅ रमनसिंह हांे या बृजमोहन अग्रवाल उनके प्रति चिन्ता और सम्मान जाहिर कर चुके हैं। सिंहदेव भी रमनसिंह को बड़ा भाई बता चुके हैं।
तो क्या प्रदेश में अजीत जोगी वाला इतिहास दोहराया जाएगा ?
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