वर्ना होली की ठिठोली! (व्यंग्य आलेख : राजेंद्र शर्मा)

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कोई हमें बताएगा कि आखिर ये हो क्या रहा है? मोदी जी के विरोधी वैसे तो नागरिक स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति की आजादी और न जाने किस-किस की स्वतंत्रता की दुहाइयां देते नहीं थकते हैं; पर खुद अपना मौका आया, तो लगे भक्तों की व्हाट्सएप पर ज्ञान बांटने तक की स्वतंत्रता का गला दबाने। बताइये! तमिलनाडु पुलिस ने यूपी के एक खाकी पार्टी के प्रवक्ता समेत, कई-कई लोगों के खिलाफ मुकद्दमा दर्ज कर लिया है। और किसलिए? व्हाट्सएप के जरिए भक्तों में इसका ज्ञान बांटने के लिए कि कैसे, तमिलनाडु में बिहारियों पर अत्याचार हो रहे हैं; बिहारी पहचान कर उनकी हत्याएं की जा रही हैं और बिहार के उप-मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के बर्थ डे की पार्टी में केक खा रहे हैं! माना कि यह व्हाट्सएप ज्ञान बांटने के लिए जिस वीडियो सामग्री का उपयोग किया गया, वह कहीं और की, किसी और मामले की थी। लेकिन, वीडियो की कहानी कुछ और तो हो सकती है, पर इसका मतलब यह तो नहीं है कि वीडियो सामग्री झूठी है। फिर इसे झूठे प्रचार, बल्कि अफवाह फैलाने का मामला बनाकर, भक्तों और उनकी व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी को बदनाम करने की कोशिश क्यों की जा रही है? अब जबकि तमिलनाडु के मोदी पार्टी के नेता भी कह रहे हैं कि तमिलनाडु में बिहारियों के साथ जोर-ज्यादती का कोई मामला नहीं हुआ, अगर ये मान भी लिया जाए कि वीडियो की कहानी अलग है, भक्तों में बांटे ज्ञान की कहानी अलग, तब भी इसे ज्यादा से ज्यादा किसी खबर के साथ गलत तस्वीर लगने जैसी मामूली गलती का ही मामला माना जा सकता है। गलत वीडियो लगने की गलती को, गलत वीडियो लगाने की गलती, बल्कि जुर्म बनाने की कोशिश क्यों की जा रही है? चेन्नै में विपक्ष वालों की सरकार है, तो क्या इत्ती सी गलती के लिए, ज्ञान बांटने वाले भक्तों को सूली पर चढ़ा देंगे! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में अगर खबर के साथ गलत वीडियो लगाने की छोटी-मोटी गलती करने की स्वतंत्रता भी नहीं दी जाएगी, तब तो संघियों की व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के माध्यम से अपने वैकल्पिक ज्ञान के प्रसार की स्वतंत्रता ही खत्म हो जाएगी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छोड़िए, यह तो शिक्षा के अधिकार पर ही हमला है।

रही ऐसी खबरों से तमिलनाडु के लोगों के खिलाफ बिहार वालों के भडक़ने की बात, तो वह बिहार वाले देखेंगे, इसमें चेन्नै की पुलिस बीच में क्यों आ रही है? और अगर व्हाट्सएप ज्ञान के बल पर बिहार में मोदी पार्टी के नेता हाय-हाय चिल्ला रहे हैं, तो यह नीतीश बाबू की सरकार और उसके विपक्ष के बीच का मामला है, उसमें तमिलनाडु वाले कहां घुसे आ रहे हैं? और डिप्टी सीएम, तेजस्वी यादव के इसके बचकाने उलाहने का क्या मतलब है कि हमारी बात पर विश्वास नहीं है, तो देश के गृहमंत्री तो आपकी ही पार्टी के हैं, अमित शाह से ही वीडियो की जांच करा लीजिए कि सच्चा है या झूठा? अब बताइए, देश के गृहमंत्री का एक यही बताने का काम रह गया है कि तमिलनाडु में बिहारियों पर अत्याचार के वीडियो झूठे हैं या सच्चे? उनकी ईडी, सीबीआइ, आइटी वगैरह खाली बैठी हैं क्या? मनीष सिसोदिया से लेकर पवन खेड़ा तक और बीबीसी से लेकर सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च तक, मोदी-अडानी विरोधियों की जांच से लेकर गिरफ्तारियों तक, बेचारी केंद्रीय एजेंसियों की जान को कितने काम हैं। अपना ये वाला असली काम करें या अफवाहों का पीछा करती फिरें कि सचमुच तमिल और बिहारी भडक़ कर आपस में न भिड़ जाएं! ऐसी नौबत आ ही गयी, तो शाह जी असम-मेघालय की पुलिस की तरह, आपसी झगड़ा सुलटाने का काम भी करेंगे, पर पहले ठीक से झगड़ा हो तो जाए; मोदी पार्टी के चुनाव में बटोरने के लिए, वोटों की फसल तैयार तो हो जाए।

रही, तमिलों और बिहारियों के झगड़ों की झूठी अफवाहें फैलाने की बात, तो जो गणेश जी की मूर्तियों को देश भर में दूध पिलवा सकते हैं, व्हाट्सएप के सहारे भक्तों से कुछ भी मनवा ही सकते हैं। लग जाए तो तीर, वर्ना कह देंगे कि ये तो होली की ठिठोली थी! कैसे हिंदू त्योहार विरोधी हैं, विपक्षी तो होली की ठिठोली का भी बुरा मान गए।

*(व्यंग्य लेखक वरिष्ठ पत्रकार और ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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