मित्रों, लोकतंत्र के मंदिरों में समकालीन परिदृश्य चिंताजनक है। व्यवधान और अमर्यादा आज का चलन बन गया है। मैं लोगों, विशेष रूप से बुद्धिजीवियों, मीडिया और युवाओं का आह्वान करता हूं कि वे हमारी संसदीय प्रणाली की इस बेअदबी को रोकने के लिए जन जागरूकता पैदा करें। इस तरह के आंदोलन का समय आ गया है ताकि हम दुनिया में सबसे बड़े लोकतंत्र होने के साथ-साथ लोकतंत्र की जननी होने पर भी गर्व करें।
निःसंदेह हमारे लोग कार्यवाहियों को बाधित करने वाले, नारे लगाने वाले और अशोभनीय आचरण करने वाले सांसदों के व्यवहार से चिंतित और क्षुब्ध हैं। सदन में देखने को मिलता है कि कागज फेंक रहे हैं, और माइक को तोड़ रहे हैं वेल में चले जा रहे हैं? हमारे सांसदों को अनुकरणीय आचरण का उदाहरण पेश करने की आवश्यकता है।
मित्रों- भारत, जो अब अमृत काल में है, यह सर्वाधिक कार्यात्मक लोकतंत्र है जिसने वैश्विक मान्यता प्राप्त की है। भारत कई मुद्दों पर वैश्विक विमर्श स्थापित कर रहा है। सभी भारतीय इस बात से खुश हैं कि देश इतनी तेजी से आगे बढ़ रहा है जितना पहले कभी नहीं बढ़ा था और इसके ऊपर की ओर बढ़ने की गति को रोका नहीं जा सकता क्योंकि हम 2047 की ओर बढ़ रहे हैं।
युवा दिमाग जो हमारे सामने हैं, हम में से कुछ उस समय नहीं हो सकते हैं, लेकिन 2047 के योद्धा हम से सकारात्मक दिशा वाला दृष्टिकोण प्राप्त करने की उम्मीद रखते हैं।
कितना विडंबनापूर्ण और कितना पीड़ादायक है! जब दुनिया हमारी ऐतिहासिक उपलब्धियों और कार्यात्मक जीवंत लोकतंत्र की सराहना कर रही है, हममें से कुछ, जिनमें सांसद भी शामिल हैं, अति उत्साह में हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों का बिना सोचे समझे अनुचित अपमान करने में लगे हुए हैं।
हम तथ्यात्मक रूप से अपुष्ट, इस तरह के मिथ्या प्रचार को कैसे सही ठहरा सकते हैं? और इस सब के समय पर भी ध्यान दें- जब भारत अपनी महिमा के क्षण जी रहा है- जी 20 के अध्यक्ष के रूप में और देश के बाहर के लोग हमें बदनाम करने के लिए अत्यधिक सक्रियता से काम कर रहे हैं।
हमारी संसद और संवैधानिक संस्थाओं को दागदार और कलंकित करने के लिए इस तरह के गलत प्रचार अभियानों को अनदेखा करना बहुत गंभीर है। कोई भी राजनीतिक रणनीति या पक्षपातपूर्ण रुख हमारे राष्ट्रवाद और लोकतांत्रिक मूल्यों से समझौता करने को न्यायोचित नहीं ठहरा सकता।
अगर मैं देश के बाहर किसी संसद सदस्य द्वारा किए गए इस मिथ्या विलाप पर चुप्पी साध लेता हूं, जो कि गलत सोच और गलत तरीके से प्रेरित है तो ये संविधान के साथ न्याय नहीं होगा। यह मेरे पद की शपथ का संवैधानिक दोष और अपमान होगा।
मैं उस बयान को कैसे न्यायोचित ठहरा सकता हूं कि भारतीय संसद में माइक बंद कर दिए जाते हैं? लोग ऐसा कैसे कह सकते हैं? क्या कोई दृष्टांत दिया गया है? हाँ! हमारे राजनीतिक इतिहास में एक काला अध्याय जरूर रहा है- आपातकाल की उद्घोषणा किसी भी लोकतंत्र का सबसे काला समय था। भारतीय लोकतांत्रिक राजनीति अब परिपक्व है। वह काला दौर दोहराया नही जा सकता है। हमारे लोकतांत्रिक मूल्यों को गिराने के लिए इस तरह का दुस्साहस अच्छा नहीं हो सकता। मैं हर किसी, बुद्धिजीवियों, मीडिया और युवाओं का आह्वान करता हूं, जो 2047 के हमारे योद्धा हैं, इस अवसर पर उठ खड़े हों, इन ताकतों को बेनकाब करें और उन्हें बेअसर करें।
मैं राजनीतिक भागीदार नहीं हूं। मैं पक्षपातपूर्ण रुख में शामिल नहीं हूं। लेकिन मैं संवैधानिक कर्तव्यों में विश्वास करता हूं। मेरे दिमाग पर डर हावी नहीं हो सकता है।
यदि मैं मौन धारण करता हूं, तो इस देश में विश्वास करने वाले अधिकांश लोग हमेशा के लिए मौन हो जाएंगे। हम इस प्रकार के मिथ्या प्रचार को उन तत्वों द्वारा गति प्राप्त करने की अनुमति नहीं दे सकते हैं जो हमारे बढ़ते विकास को रोकना चाहते हैं।
आपको संसद के कार्य में संसदीय समितियों की भूमिका से आप सभी परिचित हैं। मुझे कुछ समितियों के अध्यक्षों और सदस्यों ने सुझाव दिए कि मैं समितियों की उत्पादकता बढ़ाने और उन्हें अधिक प्रभावकारी बनाने के लिए कुछ करूँ। तो मैंने समितियों को और अधिक कुशल और प्रशिक्षित मानव संसाधन देने का निर्णय किया। इस निर्णय से पहले समितियों के सदस्यों और अध्यक्षों से व्यापक विमर्श किया गया है।
लेकिन मीडिया में एक नैरेटिव चलाया जा रहा है कि सभापति ने समितियों में अपने सदस्यों की नियुक्ति कर दी है। क्या किसी ने वास्तविकता जांचने की कोशिश भी की है? संसदीय समितियां संसद सदस्यों से मिलकर बनती हैं, ये पूरी तरह उनका डोमेन है। लेकिन सच्चाई जानने की कोशिश नहीं की गयी।
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