रायपुर, 18 मार्च 2023/पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर में ‘‘राष्ट्रीय आंदोलन की विभिन्न धाराएं – सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिंद फौज के विशेष संदर्भ में ‘‘ केन्द्रित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी कार्यक्रम आयोजित है। कार्यक्रम के द्वितीय दिवस के प्रथम अकादमिक सत्र के अध्यक्ष प्रो. के.के. अग्रवाल ने सुभाषचद्र बोस के विचारों का छत्तीसगढ पर पड़ने वाले प्रभाव और बोस के अनुयायी छत्तीसगढ़ के क्षेत्रीय नेताओं द्वारा उन्हें आगे बढ़ाने के विषय पर चर्चा की। रिर्सोस पर्सन श्री धनंजय राठौर, संयुक्त संचालक जनसंपर्क ने आजाद हिंद फौज की स्थापना पर चर्चा करते हुए बताया कि सुभाषचंद्र बोस महिला-पुरूष के समानता के समर्थक थे, इसे मूर्त रूप देने हेतु महिलाओं की पृथक रेजीमेंट बनायी गई थी। इस सत्र में कुल 08 शोधपत्रों का वाचन शोधार्थियों के द्वारा किया गया।
द्वितीय अकादमिक सत्र के अध्यक्ष प्रो.बी.एल. भदानी ने राष्ट्रीय आंदोलन की विभिन्न धाराओं में सुभाषचंद्र बोस के योगदान पर प्रकाश डालते हुए अल्पज्ञात स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में अनुसंधान करने की जरूरत पर बल दिया। रिसोर्स पर्सन प्रो. पी.सी. महतो, शासकीय मजदूर कन्या महाविद्यालय पलामू, झारखंड ने सुभाषचंद्र बोस के व्यक्तित्व पर बात की। रिसोर्स पर्सन प्रो. अनिल कुमार पाण्डेय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर विज्ञान महाविद्यालय दुर्ग ने आजाद हिंद फौज के गठन और इससे जुडे विभिन्न पहलूओं पर विस्तृत रूप से चर्चा की। इस सत्र में कुल 10 शोध पत्रों का वाचन किया गया।
तृतीय अकादमिक सत्र के अध्यक्ष प्रो. एल.एस. निगम ने सुभाषचंद्र बोस का भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में योगदान की चर्चा करते हुए उदाहरण के माध्यम से समझाया कि जिस प्रकार दो रेल पटरी समानांतर चलती है और अंतिम छोर में एक साथ मिल जाती है ठीक उसी प्रकार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की विचारधारा और सुभाषचंद्र की विचारधारा अलग-अलग है पर लक्ष्य एक है। रिसोर्स पर्सन प्रो. एस.आई. कोरेटी, विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग, तुकडोजी संत महाराज विश्वविद्यालय नागपुर ने ‘‘नेताजी के सपनों के भारत‘‘ विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि सुभाषचंद्र बोस कहते थे स्वाधीन भारत का कोई राजनैतिक दर्शन होना चाहिए। उन्होंने उनके राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्य धारा में राजनैतिक योगदान की बात की। सुभाषचंद्र बोस की विचारों का आज भी छत्तीसगढ के बालोद जिले के बाघमर गांव में प्रत्येक वर्ष 5 दिसंबर से लगातार तीन दिन तक कंगला मांझी की स्मृति दिवस पर आदिवासी बंधुओं के द्वारा सुभाषचंद्र के वेशभूषा धारण कर उनके विचारों की प्रासंगिकता को जीवित रखे हुए है। इस सत्र में कुल 7 शोध पत्रों का वाचन किया गया।
चतुर्थ अकादमिक सत्र के अध्यक्ष प्रो. ए.के. पटनायक, पूर्व विभागाध्यक्ष, उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर, उडीसा ने सुभाषचंद्र बोस का भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में योगदान पर चर्चा की। इस सत्र के रिसोर्स पर्सन डॉ. पंकज सिंह, सहायक प्राध्यापक, डॉ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, मध्यप्रदेश ने बताया कि राष्ट्रीय आंदोलन की विभिन्न धाराएं एक साथ चल रही थी। एक ओर सामाजिक सुधार के क्षेत्र में शिक्षा के महत्व को ज्योतिबाराव फुले एवं सावित्री बाई फुले लेकर चल रहे थे तो दूसरी ओर मध्यप्रांत में किसान आंदोलन, मजदूर आंदोलन, आदिवासी आंदोलन भी भारत की स्वतंत्रता के लिए एक साथ आंदोलन चल रहे थे। सुभाषचंद्र बोस इंग्लैड में आई.सी.एस. की परीक्षा उतीर्ण किया लेकिन उनका रूझान भारतीय स्वतंत्रता की ओर था। जिसके कारण वे त्यागपत्र देकर भारत आये और राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेना प्रारंभ किये। इस समय भारतीय राजनीति मंे दो विचारधाराएं चल रही थी, एक अहिंसात्मक विचारधारा और एक हिंसात्मक विचारधारा, लेकिन दोनों धाराओं का लक्ष्य केवल आजादी प्राप्त करना था। इसके अतिरिक्त सुभाषचंद्र बोस के परिवार से संबंधित अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डाला। इस सत्र में कुल 8 शोध पत्रों का वाचन किया गया। संगोष्ठी का संचालन डॉ. सीमा पाल ने की।
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