काम तो करने दो यारो! (व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

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मोदी जी गलत नहीं कहते हैं। विरोधियों की उनसे इसकी, उसकी सारी शिकायतें तो बहाना हैं, उनकी असली शिकायत तो एक ही है। मोदी जी, उनकी सरकार, उनका संघ परिवार, इतना ज्यादा काम क्यों करते हैं? बताइए, दिल्ली वाले केजरीवाल ने तो सीधे-सीधे मोदी जी के अठारह-बीस घंटे काम करने पर ही आब्जेक्शन उठा दिया। कहते हैं कि जो बंदा छ: घंटे से कम सोएगा, उसका तो दिमाग ही ठीक से काम नहीं कर सकता है। जनाब सोचते हैं कि इन्होंने सही निशाना मार लिया; या तो मोदी जी के अठारह-बीस घंटे काम करने का भक्तों का दावा झूठा है या अगले का दिमाग ही ठीक से काम नहीं कर रहा है! इन्हें कौन बताए कि छ: घंटे की नींद, इंसानों का दिमाग ठिकाने रखने के लिए जरूरी हो सकती है, मोदी जी के लिए नहीं। देवलोक में रात होने, देवी-देवताओं के सोने की बात, किसी ने सुनी है क्या?

पर बात सिर्फ केजरीवाल की थोड़े ही है। बताइए, एक दो नहीं, चौदह-चौदह विपक्षी पार्टियां, फरियाद लेकर सुप्रीम कोर्ट में पहुंच गयीं। कहते हैं कि मोदी सरकार की ईडी, सीबीआइ; सब की सब, विपक्षी पार्टियों के पीछे पड़ी हैं। मोदी सरकार को विपक्ष को परेशान करने से रोका जाए। और यह भी कि र्ईडी, सीबीआइ सब तो पहले भी थीं। पर पहले कभी इस तरह विपक्षी पार्टियों के पीछे नहीं पड़ती थीं। देश की जांच एजेंसियों का दुरुपयोग हो रहा है। अरे साफ क्यों नहीं कहते कि विपक्ष को इन एजेंसियों के ज्यादा काम करने से ही दिक्कत है। अब पहले वालों के राज में ये एजेंसियां जब काम ही कम करती थीं, तो विपक्ष के पीछे कैसे पड़तीं? अब काम कर रही हैं, तो उनके निशाने पर विपक्ष आएगा ही; ज्यादा काम करेंगी, तो उनके निशाने पर विपक्ष ज्यादा आएगा ही; इसमें मोदी जी का क्या कसूर!

और विपक्ष वालों की इस शिकायत का क्या मतलब है कि जांच एजेंसियां, मोदी जी के इशारे पर काम कर रही हैं! राज मोदी जी का, जांच एजेंसियों के मुखिया वगैरह मोदी जी के, तो एजेंसियां मोदी जी के इशारे पर नहीं तो क्या, उन विपक्ष वालों के इशारे पर काम करेंगी? विपक्ष वाले तो वैसे अपने राज में भी इन एजेंसियों से खास तीर नहीं मरवा पाए, मोदी जी के राज में उनसे क्या करा लेते? वैसे भी, सीबीआइ, ईडी वगैरह सरकार का मुंह देख-देखकर जांच नहीं करें, यह तो मांग ही गलत है। विपक्ष वाले जांच एजेंसियों को, न्याय की देवी के साथ कन्फ्यूज क्यों कर रहे हैं? पट्ठी न्याय की देवी की आंखों पर बंधी है, जांच एजेंसियों की नहीं। जांच एजेंसियों की तो दोनों आंखें खुली रहती हैं और जिसकी आंखें खुली हैं, वह कम से कम अपना तो आगा-पीछा देखकर ही काम करेगा।

सो राज करने वाले की आंखों का इशारा होगा, तो ही सीबीआइ, ईडी वगैरह की आंखें खुलेंगी, वर्ना उनकी भी आंखें बंद ही रहेंगी। अगर बंदा राज करने वाले की आंख देखकर पाला बदल जाएगा, तो जांच एजेंसियों की आंखें भी बीच रास्ते में खुली से बंद भी हो सकती हैं और बंद हों, तो खुल भी सकती हैं, हिमांतबिश्व सर्मा की तरह। सच तो यह है कि न्याय की देवी आंखें बंद कर के भी राज करने वालों की पसंद का न्याय कर ही इसीलिए पाती हैं कि जांच एजेंसियों की आंखें खुली रहती हैं। जांच एजेंसियों की आंखों पर भी पट्टी बंधी होती तो, न्याय की देवी राहुल गांधी को नाप कर ठीक उतनी सजा कैसे दे देती, जितनी मोडानी जी को उन्हें संसद से बाहर कराने के लिए चाहिए थी। सब अपना-अपना काम ही तो कर रहे हैं। अब काम तो करने दो यारो!

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