राष्ट्रभक्तों से प्रेरणा ग्रहण करें
तीर्थ-दर्शन योजना में लद्दाख के सिंधु दर्शन उत्सव के लिए मिलेंगे 25 हजार
विशेष शिविर लगाकर सिंधी विस्थापितों को मिलेगा जमीन का मालिकाना हक
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सिंधी समाज के हित में की महत्वपूर्ण घोषणाएँ
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि पिछले दशक में इंदौर में बसे पाकिस्तान के सिंधु प्रांत से आए नागरिकों की वीसा अवधि समाप्त होने के बाद भी उन्हें वापसी के लिए विवश नहीं किया गया। यह समस्या संज्ञान में आते ही प्रधानमंत्री श्री मोदी ने नागरिकता संबंधी प्रावधानों को लागू करवाया। देश की स्वतंत्रता के बाद विभाजन के कारण नए भू-भाग में जाकर बसने वाले सिंधी नागरिकों सहित बाद के वर्षों में भारत आए सिंधी नागरिकों को कठिनाई उत्पन्न नहीं होने दी जाएगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने ऐसे नागरिकों के लिए कहा कि पूरा देश आपका ही है। मुख्यमंत्री ने अनेक सिंधी व्यंजनों का उल्लेख करते हुए सिंधी समाज के साथ स्थापित अपनेपन के रिश्तों का उल्लेख किया। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने सिंधी समाज के हित में अनेक घोषणाएँ भी की।
प्रमुख घोषणाएँ
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भोपाल की मनुआभान टेकरी के साथ ही प्रदेश के जबलपुर और इंदौर में भी अमर शहीद हेमू कालानी की प्रतिमा की स्थापना की जाएगी। सिंधी संस्कृति प्राचीनतम संस्कृति है। इसकी विशेषताओं को दिखाने वाले एक संग्रहालय का निर्माण राजधानी भोपाल में किया जाएगा। सिंधी विस्थापितों को कम कीमत पर पट्टे प्रदान करने के लिए मापदंड निर्धारित किए गए हैं। इसके अनुसार प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर पात्र सिंधी विस्थापितों को पट्टे प्रदान करने का कार्य किया जाएगा। विशेष शिविर लगा कर पात्र सिंधी विस्थापितों को जमीन का मालिकाना हक दिया जाएगा।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि लद्दाख स्थित सिंधु नदी के घाट पर प्रतिवर्ष जून माह में होने वाले सिंधु दर्शन उत्सव में प्रदेश के यात्रियों को भिजवाने की व्यवस्था राज्य सरकार ने प्रारंभ की थी। कोरोना और अन्य कारणों से इसे निरंतरता नहीं मिली। इस वर्ष मुख्यमंत्री तीर्थ-दर्शन योजना में प्रति यात्री 25 हजार रूपए की राशि सिंधु दर्शन उत्सव में ले जाने के लिए प्रदान की जाएगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि सिंधी साहित्य अकादमी के बजट को बढ़ाकर पाँच करोड़ रूपए वार्षिक किया जाएगा।
सिंधी विस्थापितों को मिलेगा जमीन का मालिकाना हक
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने समारोह में कहा कि सिंधी समाज की वर्षों पुरानी मांग पूरी करते हुए पट्टे प्रदान करने के लिए विधिवत प्रीमियम की दरों में विशेष छूट का निर्णय राज्य सरकार ने लिया है। इसके अनुसार 45 वर्ग मीटर तक नि:शुल्क पट्टा दिया जाएगा। वर्तमान में 150 वर्ग मीटर तक भूमि के क्षेत्र फल के लिए 5 प्रतिशत की दर लागू है, जिसे घटा कर एक प्रतिशत किया गया है। इसी तरह 150 वर्ग मीटर से 200 वर्ग मीटर तक प्रीमियम की वर्तमान 10 प्रतिशत की दर को घटा कर भी एक प्रतिशत करने का निर्णय लिया गया है। व्यावसायिक उपयोग के भूखंड के लिए 20 वर्ग मीटर तक वर्तमान में 25 प्रतिशत की दर प्रचलित है, इस श्रेणी में अब नई दर सिर्फ 5 प्रतिशत होगी। मुख्यमंत्री श्री चौहान ने कहा कि भोपाल, सीहोर मुख्य मार्ग पर भूखंड की स्थिति में 1614 वर्गफुट आवासीय क्षेत्र फल के लिए यदि एक करोड़ 8 लाख रूपए बाजार मूल्य है, तो देय राशि एक लाख 8 हजार रूपए मात्र होगी। इसी तरह 2152 वर्गफुट आवासीय केलिए यदि एक करोड़ चवालीस लाख बाजार मूल्य होने पर, एक लाख चवालीस हजार रूपए की राशि देय होगी। इसके अलावा 215 वर्ग फुट के व्यावसायिक दुकान के लिए 14 लाख 40 हजार बाजार मूल्य की स्थिति में प्रीमियम में छूट के प्रावधान के अंतर्गत मात्र 72 हजार रूपए की राशि देनी पड़ेगी।
मुख्यमंत्री श्री चौहान ने संबोधन का प्रारंभ सिंधी भाषा में उपस्थित नागरिकों, भांजे-भांजियों संबोधित कर किया। श्री चौहान ने विभिन्न सिंधी व्यंजनों की विशेषताएँ भी बताईं। मुख्यमंत्री ने गुरूवार को इंदौर में हुई बावड़ी की घटना में दिवंगत सिंधी भाषी और अन्य नागरिकों के असामयिक निधन पर दुख व्यक्त करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
हेमू जी का मानना था – “हम नहीं रहेंगे लेकिन भारत जरूर रहेगा” – श्री मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत ने कहा कि सिंधी समुदाय सब कुछ गँवा कर भी शरणार्थी नहीं बना, उसने पुरूषार्थी बन कर दिखा दिया। शहीद हेमू के नाम के साथ सिंध का नाम जुड़ा है। सिंधी समुदाय द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में दिए गए महत्वपूर्ण योगदान का उल्लेख कम होता है। शहीद हेमू कालानी ने बलूचिस्तान जाने वाली शस्त्रों से लदी उस रेल को पलटाने का प्रयास किया था जो, क्रांतिकारियों की हलचल को दबाने के लिए जा रही थी। शहीद हेमू अपने कार्य के परिणाम भी जानते थे। पकड़े जाने के बाद उन्होंने अपने मित्रों के नाम उजागर नहीं किए। उनका मानना था कि जीवन की सार्थकता बलिदान देने में है। तरूण आयु में किए गए उनके बलिदान की गूँज मुम्बई रेसीडेंसी से लेकर विश्व के देशों में हुई। उन्होंने हमें जीवन की राह दिखा कर जीवन दे दिया। शहीदों ने प्रामाणिकता के साथ अपने स्व को बचाने के लिए जीवन समर्पित किया। स्वराज का अर्थ नागरिकों को समझाया। शहीद हेमू कालानी की अटूट देश-भक्ति को ध्यान में रख कर संकुचित स्वार्थ को छोड़ कर उनके जैसा होने का प्रयास और एक समाज, एक देश की भावना, हम सभी को आत्मसात करना है।
श्री भागवत ने कहा कि हेमू जी का मानना था कि हम तो चले जाएंगे, हम रहेंगे नहीं लेकिन भारत जरूर रहेगा। इसी आदर्श को लेकर संत कंवरराम जैसे देशभक्त भी बलिदान के लिए आगे आए। उन्होंने कहा कि सिंधी समुदाय ने भारत नहीं छोड़ा था, वे भारत से भारत में ही आए थे। सिंधु संस्कृति में वेदों के उच्चारण होते थे। हमने तो भारत बसा लिया लेकिन वास्तव में राष्ट्र खंडित हो गया। आज भी उस विभाजन को कृत्रिम मानते हुए सिंध के साथ लोग मन से जुड़े हैं। सिंधु नदी के प्रदेश सिंध से भारत का जुड़ाव रहेगा। वहाँ के तीर्थों को कौन भूल सकता है। श्री भागवत ने कहा कि आज भी अखंड भारत को सत्य और खंडित भारत को दु:स्वप्न माना जा सकता है। सिंधी समुदाय दोनों तरफ के भारत को जानता है। आदिकाल से सिंध की परम्पराओं को अपनाया गया। भारत ऐसा हो जो संपूर्ण विश्व को सुख-शांति देने का कार्य करें। तमाम उतार-चढ़ाव होंगे, लेकिन हम मिटेंगे नहीं। हम विश्व के नेतृत्व के लिए सक्षम हैं। सारे समाज के साथ कदम से कदम मिला कर चलना है। यह चिंतन आज की पीढ़ी को भी करना चाहिए कि हम कौन हैं और हमें क्या बनना है। विविधता में एकता को देखें और स्व के सच्चे अर्थ को समझ कर जीवन की दिशा तय करें।
श्री भागवत ने डॉ. हेडगेवार और अन्य विचारकों के माध्यम से संपूर्ण दुनिया को दिखाए गए कल्याण के मार्ग का भी उल्लेख किया। उन्होंने सिंधी समुदाय द्वारा सनातनी परम्परा में रहने और अपने रीति-रिवाजों को कायम रख कर अपनी खुदी को बनाने की आवश्यकता बताई। उन्होंने कहा कि ऐसे तत्वों को असफल करना है, जो लोगों को झगड़ों के लिए उकसाते हैं। जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सद्गुणों को उजागर करने की जरूरत है। श्री भागवत ने इंदौर में कल हुई दुर्घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्हें गंगाजी के दर्शन के समय यह खबर मिली और तभी गंगाजी को प्रणाम कर दिवंगत लोगों को श्रद्धांजलि भी दी।
कार्यक्रम को महामंडलेश्वर श्री हंसराम उदासीन और भारतीय सिंधु सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री लधाराम नागवानी ने भी संबोधित किया। समारोह के संयोजक भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश महामंत्री श्री भगवानदास सबनानी ने स्वागत उद्बोधनदिया। युवा कलाकारों ने शहीदों के बलिदान पर केन्द्रित नृत्य नाटिका प्रस्तुत की। मंच पर शदाणी दरबार रायपुर के प्रमुख श्री युद्धिष्ठिर लालजी, श्री अशोक सोहनी, साधु समाज के श्री प्रियादास, सांसद श्री शंकर लालवानी, विधायक श्री अशोक रोहाणी, प्रख्यात गायक श्री घनश्याम वासवानी, बालक मंडली कटनी के वरिष्ठ गायक कलाकार श्री गोवर्धन उदासी, श्री दिलीप उदासी, राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद के उपाध्यक्ष श्री मोहन मंगनानी बैंगलुरु, निदेशक डॉ. रवि टेकचंदानी नई दिल्ली, अखिल भारतीय सिंधी बोली साहित्य सभा की महासचिव श्रीमती अंजलि तुलसियानी, मध्यप्रदेश सहित छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, उत्तरप्रदेश आदि से आए सिंधी पंचायतों के पदाधिकारी, भोपाल के विभिन्न संगठन के सदस्य और बड़ी संख्या में सिंधी समाज के नागरिक उपस्थित थे।
प्रदर्शनी का अवलोकन
मुख्यमंत्री श्री चौहान और श्री मोहन भागवत ने समारोह स्थल पर लगी स्वतंत्रता संग्राम में सिंधी समाज के योगदान पर केंद्रित प्रदर्शनी देखी। प्रदर्शनी में सिंधी संतों, महापुरूषों, स्वतंत्रता सेनानियों, साहित्यकारों, सेना के अधिकारियों और समाज सुधारकों के चित्रों के साथ सिंध की परम्पराओं पर केन्द्रित चित्र भी प्रदर्शित किए गए।
प्रमुख सिंधी भाषी विभूतियों का हुआ सम्मान
मुख्यमंत्री श्री चौहान और अतिथियों ने भारत में रक्त कैंसर के उपचार में अस्थिमज्जा प्रत्यारोपण के क्षेत्र के विशेषज्ञ डॉ. सुरेश एच. आडवाणी मुम्बई सहित खेल, साहित्य, समाज सेवा, चिकित्सा, सिनेमा और कला क्षेत्र की प्रमुख विभूतियों को सम्मानित किया। इनमें सर्वश्री सी.पी. गुरनानी, इंदर जयसिंघानी, राम बख्शानी, गायक महेश चंदर, लेखक राम जवाहरानी, प्रसिद्ध अधिवक्ता महेश राम जेठमलानी, श्रीमती अनीता गुरनानी, सतराम रामानी और मनोहर तेजवानी शामिल हैं। अतिथियों ने डॉ. सुधीर आजाद की नाट्य कृति “शेरे सिंध हेमू कालानी”, श्री राजेश वाधवानी के संपादन में प्रकाशित “हेमू कालानी की गौरव गाथा” और श्री राजेन्द्र प्रेमचंदानी की पुस्तक “सिंध के क्रांतिकारी : कही-अनकही गौरव गाथा” का विमोचन किया। संचालन श्री राजेश कुमार वाधवानी और श्रीमती कविता ईसरानी ने किया।
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