भाई, विरोधियों की ये तो सरासर बेईमानी है। जब मोदी जी-शाह जी एनआरसी ला रहे थे, तब क्या हुआ था, वह याद है या नहीं? सरकार बेचारी समझा-समझा के हार गयी, पर विरोधियों ने पब्लिक को न जाने क्या पट्टी पढ़ा दी कि भाई लोगों ने कागज दिखाने से ही मना कर दिया। दाढ़ी-टोपी वालों ने तो खुला एलान ही कर दिया — हम कागज नहीं दिखाएंगे! कागज दिखाना तो दूर, यहां-वहां और न जाने कहां-कहां शाहीनबाग बनाकर, दादियों को आगे कर के धरने पर और बैठ गए। तेवर ये कि लाठी-गोली खाएंगे, पर कागज नहीं दिखाएंगे। वह तो पहले ट्रंप साहब के स्वागत वाले दिल्ली के दंगे ने और फिर कोविड के वायरस के डर ने पट्ठों की सारी अकड़ निकाल दी और टीके के चक्कर में सब के कागज निकलवा दिए, वर्ना न जाने और कब तक, ‘कागज नहीं दिखाएंगे’ का पब्लिक का ड्रामा चलता। लेकिन, अब उन्हीं विरोधियों को मोदी जी की डिग्री देखनी है। और एकाध डिग्री नहीं, हरेक डिग्री देखनी है। दिल्ली से अहमदाबाद तक और बीए से एंटायर पॉलिटिकल साइंस में एमए तक, हरेक डिग्री! यानी पब्लिक के लिए अलग पैमाना और दुनिया के सबसे लोकप्रिय पीएम के लिए अलग पैमाना। पब्लिक के जिन कागजों की वैसे भी कोई कीमत नहीं है, उन्हें पब्लिक नहीं दिखाए तो ठीक। लेकिन, मोदी जी की बेशकीमती डिग्रियां, दिल्ली से लेकर अहमदाबाद तक के विश्वविद्यालय ऐरों-गैरों को मुफ्त दिखाने से मना करें, तो गलत! गजब अंंधेरगर्दी है, भाई।
गुजरात हाई कोर्ट ने बिल्कुल सही किया कि न सिर्फ मोदी जी की डिग्री दिखाने से मना कर दिया, बल्कि डिग्री दिखाने के पीछे पड़े केजरीवाल पर जुर्माना भी लगा दिया। पर हमें नहीं लगता कि ये लोग डिग्री दिखाओ, डिग्री दिखाओ की अपनी रट, इतनी आसानी से छोड़ देंगे। लगता नहीं है कि 25,000 रुपये का जुर्माना, मोदी जी के विरोधियों को सबक सिखा पाएगा। ज्यादा दूर नहीं भी जाते, पर गुजरात हाई कोर्ट वाले, बगल में सूरत के निचली अदालत के न्यायाधीश से तो, कुछ सबक ले ही सकते थे। राहुल गांधी को आपराधिक मानहानि के लिए दो साल की कैद और आठ साल के चुनावी वनवास की सजा दी जा सकती है, तो केजरीवाल को क्यों नहीं? अगर चोरों को चोर कहने से मौसेरे भाइयों की मानहानि हो सकती है, तो डिग्री दिखाने की मांग से दुनिया के सबसे लोकप्रिय पीएम की मानहानि क्यों नहीं हो सकती है? आखिरकार, डिग्री दिखाने की मांग करना, पीएम की डिग्री पर शक करना ही नहीं है, तो और क्या है? बनने को तो इसमें सेडिशन का भी मामला बनता है। पीएम की बदनामी राष्ट्र विरोधी नहीं तो और क्या है? पर कम से कम राहुल गांधी वाली सजा तो दी ही जानी चाहिए थी। वर्ना हम से लिखवाकर ले लो, ये जैसे नौ साल से डिग्री दिखाओ-डिग्री दिखाओ करते रहे हैं, आगे भी ऐसे ही डिग्री दिखाओ-डिग्री दिखाओ करते रहेंगे।
अब प्लीज विरोधियों की चाल में आकर, कोई यह मत कहने लगिएगा कि पीएम जी भी एक बार में ये टंटा हमेशा के लिए खत्म ही क्यों नहीं कर देते हैं। सिंपल है। एक बार डिग्री सब को दिखा दें और किस्सा खत्म! पर ये सिंपल, इतना सिंपल है कहां? नहीं, नहीं, ये डिग्री के होने न होने की बात नहीं है। यह डिग्री दिखाने या नहीं दिखाने के अधिकार की बात है। जिन फटीचरों के घर में देखने-दिखाने की चीज के नाम पर, भुनी भांग भी नहीं निकलेगी, उन्होंने भी अपनी पारी में कागज दिखाने से इंकार कर दिया था कि नहीं? पर क्या उनके कागज नहीं दिखाने से मोशा जी ने यह नतीजा निकाला कि उनके पास कागज ही नहीं हैं। कागज नहीं हैं — यानी विदेशी और क्या; भेजो बंगलादेश। तब तो असम की तरह देश भर में, संभावित विदेशियों की जेलों की कतारें लग गयी होतीं। ढांचागत निर्माण का सारा पैसा, जेलें बनाने में ही चला जाता और जेलें चलाने के लिए आइएमएफ से मदद मांगनी पड़ती, सो अलग। पर ऐसा कुछ भी नहीं ना हुआ। मोशा जी ने बस उतना ही माना, जितना लोगों ने अपने मुंह से कहा — कागज नहीं दिखाएंगे! फिर मोदी जी के डिग्री नहीं दिखाएंगे, को सिर्फ वही क्यों नहीं माना जाना चाहिए, जो कहा जा रहा है — वह भी डिग्री नहीं दिखाएंगे! हर चीज की तरह इसमें भी मोदी जी के साथ दुभांत क्यों? फकीर हैं तो क्या हुआ, फटीचरों के ‘नहीं दिखाएंगे’ का वजन, मोदी जी के ‘नहीं दिखाएंगे’ से ज्यादा तो नहीं हो जाएगा।
असल में तो इसे डिग्री दिखाने, नहीं दिखाने के झगड़े की तरह देखना ही गलत है। डिग्री होने, न होने से तो खैर इसका दूर-पास का कोई संबंध ही नहीं हैै। असली मुद्दा यह है कि अगर डिग्री मोदी जी की है, तो इसका फैसला भी तो मोदी जी का ही होना चाहिए कि उन्हें डिग्री दिखानी है या नहीं दिखानी है? देश में कम से कम इतनी डैमोक्रेसी तो अब भी बची हुई है कि पीएम यह तय कर सकता हो कि उसे अपनी डिग्री दिखानी है या नहीं दिखानी है? और अगर पीएम को लगता है कि उसे डिग्री नहीं दिखानी है, तो उसके इस निर्णय का सम्मान किया जाना चाहिए, न कि उसे यह कहकर बदनाम किया जाना चाहिए कि डिग्री नहीं दिखाना, डिग्री नहीं होने का ही सबूत है। यह भारतीय जनतंत्र के लिए जीने-मरने का प्रश्न है। अगर देश के पीएम को भी अपनी स्वतंत्र इच्छा पर चलने का अधिकार नहीं मिलेगा, तो अवाम को स्वतंत्र इच्छा पर चलने का अधिकार क्या खाकर मिलेगा? इसीलिए, पीएम जी ने कह दिया है कि किसी के कहने से डिग्री नहीं दिखाना, मेरे लिए सिद्धांत का प्रश्न है। और सिद्धांत पर मोदी नाम वाले कभी समझौता नहीं करते। फकीर हूं, एक सौ चालीस करोड़ जनता कह दे तो, गद्दी छोडऩे में एक पल नहीं लगाऊंगा; पर डिग्री नहीं दिखाऊंगा! हाई कोर्ट जाऊंगा, सुप्रीम कोर्ट भी चला जाऊंगा, जरूरत हो तो सत्याग्रह भी कर के दिखाऊंगा, पर किसी ऐरे-गैरे के मांगने से, डिग्री हर्गिज नहीं दिखाऊंगा।
और जैसे डिग्री नहीं दिखाना, डिग्री नहीं होने का साक्ष्य नहीं है, उसी तरह यह किसी बेतुकी झक या खब्त का मामला भी नहीं है। यह तो एक शुद्ध बिजनस आइडिया का मामला है, जो एक गुजराती के दिमाग में ही आ सकता है। डिग्री की जब इतनी चर्चा हो ही गयी है, तो शायद उसके इस मुफ्त के प्रचार का भी एडवांटेज ले सकते हैं। दिखाओ, दिखाओ का शोर मचाने वालों को मुफ्त में डिग्री क्यों दिखाना, जब डिग्री समेत अपनी अनेक दुर्लभ चीजें जनता के दर्शनार्थ रखने के लिए, मोदी जी पुराने वाले संसद भवन में अजायबघर बना सकते हैं और टिकट लगाकर देश की आय में चार पैसे बढ़ा सकते हैं। आखिर, इस अजायबघर में एमए इन एंटायर पॉलिटिकल साइंस की विश्व की इकलौती डिग्री भी तो होगी, जो सिर्फ और सिर्फ मोदी जी के पास है। उनसे पहले यह डिग्री किसी को मिली नहीं और उनके बाद तो डिग्री का सांचा ही तोड़ दिया गया।
और खुदानखास्ता अगर डिग्री नहीं ही हो, तब भी क्या? अमृतकाल में भी पीएमओ डिग्री-मुक्त नहीं होगा, तो कब होगा! इसीलिए, जरूरत हुई तो डिग्री केंसल कराएंगे, पर मोदी जी डिग्री नहीं दिखाएंगे। पीएमओ को डिग्री मुक्त कराना ज्यादा जरूरी है या पीएम को पढ़ा-लिखा मनवाना।
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