हाइकोर्ट के निर्णय- निर्देश पर छत्तीसगढ़ राज्य में अधिकारी गंभीर नहीं: अधिकारियों पर अवमानना कार्यवाही जरूरी- वीरेन्द्र नामदेव

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छत्तीसगढ़ राज्य संयुक्त पेंशनर्स फेडरेशन के प्रदेश अध्यक्ष वीरेन्द्र नामदेव ने माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा आईएस मनोज पिंगुआ के विरुद्ध 5 प्रकरणों में अवमानना के नोटिस को उचित करार देते हुए कहा है कि सेवानिवृत अधिकारियों एवं कर्मचरियों के अनेक प्रकरण आज भी लम्बित है जिन पर न्यायालय के निर्णय- निर्देश जारी किये गए हैं हाइकोर्ट के निर्णय- निर्देश पर छत्तीसगढ़ राज्य में जिम्मेदार अधिकारी गंभीर नहीं है इसलिए अधिकारियों पर अवमानना कार्यवाही जरूरी है ताकि वे भविष्य में न्यायालय के निर्णय- निर्देश के परिपालन में तत्परता से कार्यवाही कर वादी कर्मचारियों को समय पर न्याय मिल सके।
जारी विज्ञप्ति में उन्होंने आगे बताया है कि स्वास्थ्य विभाग में धमतरी जिले आदिवासी विकास खंड नगरी में जीवन भर शासकीय सेवा कर रिटायर डी के त्रिपाठी विगत 5 साल पूर्व अधिक भुगतान की वसूली के विरुद्ध हाई कोर्ट बिलासपुर से स्थगन आदेश पारित करने के बाद शासन से प्रशासकीय अनुमति इंतजार में है, प्रशासकीय अनुमति में देरी के कारण उनकी लाखों की ग्रेजयूटी के अलावा अन्य क्लेम का भुगतान ट्रेजरी से नहीं हो रहा है। विडम्बना है कि पी पी ओ (पेंशन पेमेंट आर्डर) भी जारी नहीं होने से पेंशन भी निर्धारित नहीं हो रहा है। जीवन के अंतिम पड़ाव में हाईकोर्ट का आदेश के बावजूद 5 वर्ष से परेशान हैं। आर्थिक संकट के कारण वह अब स्वयं अवमानना कार्यवाही हेतु कोर्ट जाने में असमर्थ हैं। इसी तरह समान प्रकृति के प्रकरण स्वास्थ्य विभाग का ही कृष्णा लाल साहू का भी है जो बलोदा बाजार जिले से 31/5/22 को रिटायर होकर लगभग एक साल से कोर्ट के स्थगन के बाद प्रशासकीय अनुमति के इंतजार में पेंशन सहित सभी जायज क्लेम से वन्चित आर्थिक संकट से जूझ रहे है।
जारी विज्ञप्ति में नामदेव ने आगे बताया है कि 30 जून को रिटायर हुए कई विभाग के अनेक अधिकारी- कर्मचारियों को एक वेतनवृद्धि देने आदेश कोर्ट पारित हुआ है जिस पर कोर्ट के निर्णय के आधार पर आवेदन दिया गया है,कई से महीने से मंत्रालय में इस पर केवल विचार हो रहा है। सेवा अनिवार्य सेवानिवृत किये गए कर्मचारी नागेंद्र सिंह के मामले में कोर्ट के निर्देश के बाद भी बहुत वक्त जाया कर उनके साथ अन्याय किया गया। अनुकम्पा नियुक्ति जैसे न्याय के कई मामलों पर जानबूझ कर हाई कोर्ट के निर्णय- निर्देश पर कार्यवाही को लम्बा खींच कर वादी को परेशान करने की नियत और परम्परा पर रोक लगाने कड़ी कार्यवाही की जरूरत पर बल दिया है।

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