भाजपा अपना 43वां स्थापना दिवस मना रहा है। इन 43 सालों में पार्टी ने एक छोटी सी पार्टी से लेकर देश ही नहीं दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है। इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह पार्टी के भीतर की खासियत है, जिसने स्थिति को बदल दिया है।
- भाजपा की ओर से मनाया जा रहा है 43वां स्थापना दिवस, चर्चा में सीएम योगी
- योगी आदित्यनाथ ने अपने कार्यों के जरिए देश की राजनीति में बनाया बड़ा स्थान
- भाजपा की सेकेंड लेवल लीडरशिप पॉलिसी पर भी हो रही है खूब चर्चा
लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी के स्थापना दिवस के मौके पर पार्टी और संगठन से जुड़े लोग सफलता की बधाई दे रहे हैं। कभी लोकसभा में महज दो सीटों पर जीत दर्ज करने वाली पार्टी लगातार दो बार पूर्ण बहुमत की सरकार बना चुकी है। भाजपा अब लोकसभा चुनाव 2024 की तैयारियों में जुटी है। ऐसे में हर राजनीतिक विश्लेषक इस समय में पार्टी की सफलताओं को लेकर अपनी-अपनी समीक्षाओं में जुटे हुए हैं। केंद्र की सत्ता में 9 साल से अधिक समय से काबिज भाजपा के खिलाफ विपक्ष की ओर से कोई बड़ा मुद्दा स्थापित करने में सफलता नहीं मिल रही है। केंद्रीय जांच एजेंसियों को कटघरे में खड़ा करने से लेकर, संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग संबंधी राजनैतिक आरोपों को छोड़ दें तो कोई भी बड़े घोटाले का आरोप प्रभावी रूप से केंद्र की सत्ता के खिलाफ खड़ा करने में कामयाबी नहीं मिली है। कुछ यही हाल देश के सबसे बड़े प्रदेश उत्तर प्रदेश का है। साढ़े तीन दशक के बाद यूपी चुनाव 2022 में भाजपा ने लगातार दूसरी बार प्रदेश में पूर्ण बहुमत हासिल करने में कामयाबी हासिल की। पार्टी की कामयाबी को लेकर पीएम नरेंद्र मोदी से लेकर योगी आदित्यनाथ तक विश्लेषकों को रिसर्च करने की बात कर चुके हैं। अगर आप पार्टी की सफलता के पीछे की बड़ी वजह को देखेंगे तो आपको योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री के रूप में सफलता पर गौर करना होगा। देश के सबसे बड़े प्रदेश के मुख्यमंत्री के तौर पर उनके कार्य को न केवल सराहा गया है, बल्कि सीएम योगी आदित्यनाथ वर्तमान समय में भाजपा में अपना कद काफी विशाल कर चुके हैं। यही, भाजपा की सबसे बड़ी खासियत को प्रदर्शित करता है।
सेकेंड लेवल लीडरशिप पर लगातार काम
भारतीय जनता पार्टी की खासियत उसके सेकेंड लेवल लीडरशिप पर काम किया जाना है। देश की किसी भी अन्य पार्टी में इस प्रकार का कार्य होता नहीं दिखता है। देश की बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों में इस प्रकार की स्थिति नहीं दिखती है। उनके नेता पहले से निर्धारित होते हैं। अगर किसी पार्टी में अध्यक्ष बदलता भी है तो भी चेहरे के रूप में स्थापित नाम ही लिए जाते हैं। मतलब, सेकेंड लेवल लीडरशिप एक परिवार तक सीमित रहता है। वंशानुगत राजनीति से उबे लोगों को भाजपा इस कारण पसंद आती है। आप देख लीजिए कि अटल-आडवाणी युग के समय में ही भाजपा में प्रमोद महाजन, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, एम. वेंकैया नायडू जैसे नेताओं का कद किस प्रकार का था। अगर दूसरी पार्टी में इस प्रकार से अगर किसी अन्य सेकेंड लेवल लीडरशिप की चर्चा होती है तो उसके पर कुतरने की कोशिशें तेज हो जाती हैं।
गुजरात में नरेंद्र मोदी के 2001 सत्ता संभालने के बाद से ही उनके राष्ट्रीय राजनीति में आने की चर्चा तेज हो गई थी। भले ही इसमें करीब 12 सालों का वक्त लगा। वर्ष 2013 में उन्हें गुजरात से निकाल कर राष्ट्रीय राजनीति में लाया गया। लेकिन, इन सालों में उनका चेहरा पार्टी का चेहरा बनता चला गया। इसे पार्टी ने भी स्वीकार किया। मोदी कार्यकाल में भी अमित शाह, नितिन गडकरी, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर, धर्मेंद्र प्रधान, मनसुख मंडाविया, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेताओं की चर्चा बड़े और कड़े फैसले लेने वाले नेताओं के रूप में होती है।
भाजपा के बदलते स्वरूप में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, मध्य प्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान, असम के सीएम हिमंता विस्वा सरमा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, किरेन रिजीजू से लेकर युवा चेहरे तेजस्वी सूर्या और जमयांग सेरिंग नामग्याल तक जैसे नेता तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इन्हें आगे बढ़ाने में पार्टी का सीनियर लीडरशिप के भीतर भय का अहसास नहीं दिखता। लीडरशिप ट्रांसफर भी इस पार्टी की रणनीति का अहम हिस्सा रही है। यूपी में जिस प्रकार से भाजपा का कभी चेहरा रहे अटल बिहारी वाजपेयी, मुरली मनोहर जोशी और राजनाथ सिंह का स्थान सीएम योगी आदित्यनाथ ने ले लिया है। उनके साथ केशव प्रसाद मौर्य और ब्रजेश पाठक जैसे नेता भी प्रदेश में अपना स्थान बना रहे हैं। भाजपा के खिलाफ खड़ी होनी वाली पार्टियों की सबसे बड़ी मुश्किल उनका परिवार से बाहर निकल नहीं पाना है।
ऐसे मजबूत होते गए योगी
भाजपा में योगी अब हिंदुत्व ब्रांड का सबसे बड़ा चेहरा बनते दिख रहे हैं। भगवा धारण करने वाले योगी आदित्यनाथ की मांग तमाम चुनावों में हो रही है। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और केंद्र की सत्ता ने हमेशा उनका साथ दिया। उनके कार्यों और बुलडोजर मॉडल की तारीफ तो पीएम नरेंद्र मोदी तक कर चुके हैं। ऐसे में सीएम योगी लगातार अपने चेहरे को बड़ा बना रहे हैं। वर्ष 2017 तक एक संसदीय क्षेत्र के सांसद के तौर पर जाने और पहचाने वाले नेता योगी आदित्यनाथ को देश की राजनीति में इस तरह का मुकाम शायद भाजपा में ही संभव है। उन्होंने इस मौके का फायदा भी उठाया है। उनके पांच कामों के जरिए समझिए, कैसे उन्होंने प्रदेश के राजनीति मैदान में अपने आप को स्थापित किया है और विपक्षी दलों के लिए वे मुश्किल लक्ष्य बन चुके हैं।
कानून व्यवस्था का बुलडोजर मॉडल: सीएम योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2017 में प्रदेश की सत्ता में एंट्री के साथ ही कानून व्यवस्था पर सबसे अधिक जोर दिया। संगठित अपराध की जड़ पर वार किया। बड़े अपराधियों पर सीधा हमला ने गुर्गों के सामने में परेशानी खड़ी की। कानपुर के विकास दुबे की गाड़ी पलटने से लेकर प्रयागराज के उमेश पाल मर्डर केस में मुख्य साजिशकर्ता बनाए अतीक अहमद की गाड़ी पलटने तक की चर्चा के बीच सीएम योगी का कानून व्यवस्था को लेकर जीरो टॉलरेंस की नीति प्रभावी रही है। अपराध के बाद कार्रवाई ने लोगों के मन में एक प्रकार से भाव स्थापित किया है कि यह योगी ही कर सकते हैं। उस पर बुलडोजर मॉडल ने उनकी सख्त प्रशासन की छवि को विस्तार दिया है।
दंगामुक्त प्रदेश पर काम: योगी शासनकाल से पहले प्रदेश में हर पर्व के दौरान लोगों के दो गुटों की भिड़ंत का मामला सामने आता था। इस स्थिति ने प्रदेश में विकास और उस प्रकार की सोच को प्रभावित किया। सीएम योगी ने इस स्थिति से नियंत्रण के लिए दंगाइयों पर निशाना साधना शुरू किया। महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के दौरान पुलिस बल की तैनाती और उनकी कार्रवाई ने हर वर्ग पर कार्रवाई की। दंगाइयों के पोस्टर तक लगे। उनके घरों पर चले बुलडोजर ने दंगा की सोच रखने को भीतर तक हिला दिया। यही कारण है कि जब बिहार और पश्चिम बंगाल में रामनवमी के दौरान निकले जुलूस को लेकर दंगे हुए तो योगी मॉडल की चर्चा होने लगी। योगी-सा मुख्यमंत्री होने की बात इन राज्यों में की जाने लगी है।
कनेक्टिविटी पर जोर: योगी शासन से पहले प्रदेश में कनेक्टिविटी पर जोर देने की बातें खूब हुईं। योजनाएं बनीं और कागजों में दम तोड़ती रही। कुछ पूरी कराई गई योजनाओं के आधार पर यूपी जैसे बड़े प्रदेश में विकास के दावे खूब हुए। लेकिन, योगी सरकार ने सभी 75 जिलों के कनेक्टिविटी पर जोर दिया। पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का काम पूरा कराया गया। बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे बनकर तैयार हुआ। करीब 10 एयरपोर्ट का निर्माण चल रहा है। यूपी पांच इंटरनेशनल एयरपोर्ट वाला प्रदेश बनने वाला है। जेवर में प्रस्तावित इंटरनेशनल एयरपोर्ट देश का सबसे बड़ा एयरपोर्ट होगा। कनेक्टिविटी पर जोर और एक्सप्रेसवे प्रदेश के जरिए योगी ने गांवों के उत्पाद को बाजारों तक आसानी से पहुंचाने में बड़ी सफलता दर्ज की।
केंद्रीय योजनाओं का लाभ आम जन तक: योगी सरकार में केंद्रीय योजनाओं का लाभ आम लोगों तक पहुंचाने का बड़ा कार्य किया गया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण कोरोना काल में केंद्र सरकार की ओर से गरीबों को अन्न योजना का लाभ पहुंचाना है। इस योजना के जरिए गरीबों के घर के चूल्हे को संकट के समय में भी जलाए रखने में कामयाबी मिली। पेयजलापूर्ति योजना, सबको मकान, शौचालय और उज्ज्वला योजना का लाभ लोगों को दिलाने में योगी सरकार कामयाब हुई। यूपी चुनाव 2022 के दौरान ये सभी मुद्दे काफी प्रभावी दिखे थे।
विवादित मुद्दों पर स्टैंड: योगी सरकार ने तमाम विवादित मुद्दों पर अपना स्टैंड क्लीयर रखा। हाल ही में एनसीईआरटी ने मुगलकालीन इतहास को न पढ़ाने का निर्णय लिया। योगी सरकार ने सबसे पहले 11वीं और 12वीं की किताबों से हटाए गए पाठों पर अपनी सहमति की मुहर लगा दी। इसी प्रकार धार्मिक स्थानों से लाउडस्पीकर हटाए जाने का फैसला लिया गया, तो मस्जिदों के साथ-साथ मंदिरों से भी लाउडस्पीकर हटाए गए। उनके वॉल्यूम को धीमा किया गया। सीएम योगी ने इन मामलों में कभी भी स्पष्ट तरीके से बोलना नहीं छोड़ा। यही कारण है कि आज के समय में उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के बाद देश में भाजपा का बड़ा नेता के रूप में देखा जाता है। यही, भाजपा को सबसे अलग बनाती है।
+ There are no comments
Add yours