US Vs China: चीन की अर्थव्यवस्था को लेकर क्यों हमलावर है अमेरिका, बाइडन इसे क्यों बता रहे टाइम बम? जानें सबकुछ

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रायपुर । इन दिनों दुनिया की दो बड़ी अर्थव्यवस्थाओं अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध छिड़ा हुआ है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा जारी किया गया एक कार्यकारी आदेश इसकी वजह है। अमेरिका ने यह कदम चीनी प्रौद्योगिकी में अमेरिकी निवेश को प्रतिबंधित करने के लिए उठाया है। वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रपति जो बाइडन ने चीन की अर्थव्यवस्था की तुलना एक ऐसे टाइम बम से कर दी है जो कभी भी फट सकता है।

हालांकि, यह पहली बार नहीं है जब दोनों देशों के आर्थिक रिश्ते खराब हुए हैं। बाइडन प्रशासन के सत्ता में आने के बाद कई फैसलों ने अमेरिका-चीन को आमने-सामने लाने का काम किया है। इस बीच जानते हैं कि आखिर अमेरिका-चीन के बीच आर्थिक मोर्चे पर क्या हो रहा है? नई आर्थिक भिड़ंत की वजह क्या है? अमेरिका के फैसले पर चीन का क्या रुख है? आदेश का असर क्या हो सकता है? बाइडन ने चीनी अर्थव्यवस्था को लेकर क्या कहा है? आइए जानते हैं…

अमेरिका-चीन के बीच आर्थिक मोर्चे पर क्या हो रहा है? 
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर करते हुए चीनी प्रौद्योगिकी में अमेरिकी निवेश को प्रतिबंधित करने की घोषणा की है। यह प्रतिबंध सेमीकंडक्टर, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) सहित कुछ संवेदनशील हाई-टेक क्षेत्रों पर केंद्रित है।

दरअसल, बाइडन प्रशासन हाल के महीनों में सैन्य, आर्थिक और तकनीकी मोर्चों पर चीन के खिलाफ अपनी स्थिति को मजबूत करने का प्रयास कर रहा है। उन्नत तकनीकों तक चीन की पहुंच को रोकने के लिए अमेरिका द्वारा उठाया गया कदम भी इसी श्रृंखला का एक हिस्सा है।

यह फैसला तब आया है जब बाइडन दशकों के बाद अमेरिकी विनिर्माण को पुनर्जीवित करने की अपनी योजना को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण-पश्चिम के देशों के दौरे कर रहे हैं। ये प्रतिबंध अगले साल प्रभावी हो सकता है।

अमेरिकी आदेश में क्या-क्या है?
इस कार्यकारी आदेश का उद्देश्य चीन को अपनी घरेलू क्षमताएं बनाने में मदद करने से अमेरिकी फंड को रोकना है। इसके तहत, अमेरिकी ट्रेजरी को सेमीकंडक्टर्स और माइक्रोइलेक्ट्रॉनिक्स, क्वांटम कंप्यूटिंग और कृत्रिम बुद्धिमत्ता में कुछ अमेरिकी निवेशों को रोकने का निर्देश दिया गया है। आदेश में एक आउटबाउंड निवेश समीक्षा तंत्र बनाने का भी उल्लेख किया गया है।

इसमें चीन, हांगकांग और मकाऊ को ‘कंट्रीज ऑफ कंसर्न’ के रूप में सूचीबद्ध किया गया है। बाइडन प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा है कि भविष्य में अन्य देशों को भी जोड़ा जा सकता है। नियम भविष्य के निवेश पर लागू होंगे और अधिकारियों का कहना है कि लक्ष्य उन क्षेत्रों में निवेश को विनियमित करना है जो चीन को सैन्य और खुफिया लाभ दे सकते हैं।

बिगड़ सकते हैं दोनों देशों के संबंध
जानकारों की मानें तो अमेरिका का यह नया आदेश चीन के साथ उसके संबंधों को और खराब कर सकता है। अमेरिका में मौजूद चीनी दूतावास ने इस आदेश को लेकर निराशा भी जाहिर की है। हालांकि चीन की आपत्ति पर अमेरिका ने कहा है कि यह आदेश सिर्फ उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखकर जारी किया गया है लेकिन इससे दोनों देशों की एक दूसरे पर आर्थिक निर्भरता पर असर नहीं होगा। वहीं, अमेरिका की विपक्षी पार्टी रिपब्लिकन ने बयान जारी कर इस आदेश में कई खामियां बताई हैं और इस आदेश को सिर्फ भविष्य के निवेश पर लागू करने पर भी नाराजगी जाहिर की है।

दोनों देशों के बीच राजनीतिक कड़वाहट भी लगातार बढ़ रही है। जो बाइडन ने बीते साल जून में भी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को तानाशाह कहा था। जिस पर चीन ने कड़ी आपत्ति जताई थी और बाइडन की टिप्पणी को उकसावे वाली कार्रवाई बताया था। अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन हाल ही में चीन का दौरा करके लौटे हैं। दोनों देशों के संबंध कड़वाहट के दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में बाइडन की ताजा टिप्पणी से भी दोनों देशों के संबंधों में तनाव आ सकता है।

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