आज एकाएक पेपर पढ़ते वक्त एक खबर पढ़कर विनोद खन्ना की याद आ गयी। बेहतरीन कलाकार स्मार्ट। पुरानी हेराफेरी में… र… र… र… र… हेराफेरी मतलब फिलिम हेराफेरी। वो भी नयी अक्षय कुमार, सुनील शेट्टी और परेश रावल वाली नहीं, अमिताभ, रेखा और विनोद वाली
इसमे एक बार में दारू पीकर पैसे न देने पर जब विनोद खन्ना एक दादा टाईप के आदमी को पैसे देे देने की सिफारिश करता है तो वो कहता है किसकी मां ने दूध पिलाया है जो मुझसे पैसे वसूल कर सके’। बस अपना हीरो शुरू हो जाता है दे दनादन, दे दनादन। उस दादा और उसके पोतों की आई मीन उसके चम्मच गुण्डों की धुनाई करता है पैसे वसूल करता है और कहता है ‘देखा मेरी मां ने दूध पिलाया है’।
बस ऐसी ही सिचुएशन अपने यहां भी है। पहला दृश्य ‘किसकी मां ने दूध पिलाया वाला तो नज़र आ रहा है बरसों से….’, दूसरा दृश्य ‘देखा मेरी मां ने दूध पिलाया है’ वाला दृश्य अभी तक तो नहीं दिखा है। बात हो रही है अपनी राजधानी मे आॅटो वालों के आॅटो में भाड़े का मीटर लगाने की। आज के बुजुर्ग जब जवान थे और भाड़ा ज्यादा नहीं, बहुत ज्यादा लेने पर आॅटो वालों से उलझ जाते थे वे सब आज सिचुएशन को समझ गये हैं कि उलझने से पहले आॅटो वाले की, फिर सरकारी, ‘प्रताड़ना’ के सिवाय कुछ भी हासिल नहीं होगा, लिहाजा कम्प्रोमाईज़ कर लिया है। जितना भी अधिक हो भाड़ा चुपचाप दे देते हैं। और आज की युवा पीढ़ी को तो पता ही नहीं है कि सारे हिंदुस्तान में सबसे महंगा आॅटो हमारी प्रिय राजधानी रायपुर में है।
बहरहाल आज जो खबर पढ़ी जिससे एक बार फिर घाव उभर कर सामने आ गये वो ये थी कि शासन ने सरकारी वाहन चालकों को ट्रैफिक एम्बेसेडर बनाकर यातायात सुधारने का काम सौंपा है। हा … हा… हा… हा… हा…. हा… । सरकारी वाहन चालकों को यातायात सुधारने का काम…. ?? अरे भैया सबसे ज्यादा यातायात बिगाड़ने का काम, नियम तोड़ने का काम यही लोग तो करते हैं। कभी किसी सरकारी गाड़ी को सफेद पट्टी से पहले रूकते देखा है क्या, अति सामान्य सी बात है। नहीं करते। सभी रूल्स ब्रेक करते हैं। अनअथोराईज़्ड सायरन बजाते फिरते हंै। लिस्ट लंबी है। फुल मनमानी। बेखौफ। तो बस, इनसे सुधरवाओगे जनता को… हो गया न जोक।
फिर भी जब इन्हें प्रशिक्षण दिया जाएगा तो सबसे पहले इन्हें कसम दिलवानी होगी कि ये खुद नियम नहीं तोड़ेंगे। दूसरी कसम ये कि आम आदमी को प्रताड़ित/दुरूस्त करने के बजाए पहले लोकवाहक जैसे आॅटो, मिनी मालवाहक आदि को सबसे पहले सुधारेंगे। क्योंकि बड़ी बसों को सुधारने का प्रयास करेंगे तो उनके मालिक इन्हीं का तबादला करवा देंगे। क्योंकि उनकी तो बड़ी एप्रोच होती है ये बड़े नेता होते हैं इनसे ही विभागीय अधिकारियों को पैसा पहुंचता है।
वैसे आॅटो वालों को सुधारने का प्रयास किया तो उन्हें और उनके अधिकारियों को यही जवाब मिलेगा कि किसकी मां ने दूध पिलाया है जो आॅटो वालों को नियम से चलना सिखा सके। बरसों से यानि हमारी जवानी से लेकर हमारे बुढ़ापे तक…. नहीं, नहीं, हमारी जवानी से लेकर हमारे बच्चों की जवानी तक कई बार आम आदमी को आॅटो वालों की लूट से बचाने के लिये मीटर लगाने का प्रयास किया गया। पर हर बार उन्हें यही प्रतिध्वनि सुनाई पड़ी कि किसकी मां ने … ।
इतने सालों में ऐसा अभी तक नहीं मिला जो अंत में विनोद खन्ना की तरह कह सके ‘देखा मेरी मां ने दूध पिलाया है’। नये-नये जो अधिकारी आते हैं यानि जो जवान होते हैं और सिस्टम में अभी ढले नहीं होते उनसे कुछ उम्मीद की जा सकती है।
वैसे एक सर्वविदित और सामान्य सी बात है कि यदि कर्णधार पैसे लेना बंद कर दे ंतो सबकुछ सामान्य रूप से ठीक हो जाए। ऐसे सब विशेष प्रयास करने ही न पड़ें। पर ऐसा होगा नहीं। तो… ? जाहिर है ऐसा होगा नही ंतो फिर वैसा भी होगा नहीं। तो बात घूमफिर कर वहीं आ जाती है कि ‘किसकी मां ने दूध पिलाया है…
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जवाहर नागदेव, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, चिन्तक, विश्लेषक
उव 9522170700
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